(देवभूमि से भरत सिंह रावत) आज गढ़वाल के दो अनुभवी लेखक कवि की दैनिक रचना प्रस्तुत ....
( लेखक "जगमोरा" जी- 9810762253 )
*त्रिगोरु बल मि क्य छौं* ?
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(पजल पोथी-२०)
पजल-७७३
गुरौ न्योळुं सैर
कुकुर बिरळुं बैर
स्याळ सि कस्तूरीन्
भर्मांद सवा सेर
जनि बिरळौं बाटु
कटण अशुभ ह्वाइ
तनि कुर्स्यळौं बाटु
द्यखण अशुभ ह्वाइ
*भावार्थ*
अलाणा-फलाणा (अमुक-समुक) स्याळ (लोमड़ी/सियार), बिरळु (बिल्ला) और न्योळु (नेवले) के त्रिगोरु (तीन जानवरों के ट्रिपलीकरण) स्वरूप की आधारभूत भूमिका स्वरूप पहेली खेल के प्रथम चरण में अपनी संदर्भित बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल गुरौ (सांप) न्योळुं (नेवले) की सैर (नकल), कुकुर बिरळुं (कुत्ते बिल्ली) का बैर, स्याळ (सियार) जैसा कस्तूरी (गंध) से, भरमाता है सवा सेर। अमुक पुनः अपनी संदर्भित बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जैसे बिरळौं (बिल्ली) का बाटु (रास्ता), काटना अशुभ हुआ, वैसे ही कुर्स्यळौं (एक प्रकार के मांसाहारी जीव) का बाटु (रास्ते), दिखना अशुभ हुआ।
बिरळुं भाग छींकु
फूटी बल कैकु
स्याळुं भाग मेळु
पाकी बल जैकु
मेळु द्वि द्वि दाणा
बल मिल बि चाखा
घ्युवा द्वि द्वि माणा
बल मिल बि चाखा
*भावार्थ*
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल में फंसाते हुए पहेली खेल के भ्रामक दूसरे चरण में अपनी संदर्भित बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल बिरळुं (बिल्ली) के भाग छींकु (छींका), फूटा बल कैकु (किसके लिए)? स्याळुं (सियारों) के भाग मेळु (नाशपाती जैसा फल), पाकी (पका) बल जैकु (जिसके लिए)। अमुक पुनः अपनी संदर्भित बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल मेळु (तथाकथित नाशपाती जैसे फल) के दो दो दाणे (दाने), बल मिल (मैंने यानि अमुक) ने भी चखे, घी के दो दो माणे (आधे-आधे किलो के मापक बर्तन भरे), बल मिल (मैंने यानि अमुक) ने भी चखे।
ग्यूं का बीच कुरो
भलु नी कुरफ्वळो
गौं का बीच गुरो
भलु नी कुरस्यळो
न्योळुस्याळ बिरळुं
जन रांदो यखळु
मि दळेदर सुंगरुं
जन खांदो भुखळु
*भावार्थ*
अमुक भ्रामकता के मकड़जाल से ससम्मान बाहर निकाल कर वेबसाइट स्वरूप पहेली खेल के ज्ञानमयी तीसरे चरण में भावनात्मक एवम संवेदनात्मक स्वरूप अपनी संदर्भित बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल ग्यूं (गेहूं) के बीच कुरो (एक प्रकार की खर-पतवार, जो गेंहू की खुराक को खा जाती है, जिसके कारण गेंहू के दाने बुसीले/थोथे हो जाते हैं), भलु (अच्छी) नहीं कुरफ्वळो (एक प्रकार की खर-पतवार, जो गेंहू की खुराक को खा जाती है, जिसके कारण गेंहू के दाने बुसीले/थोथे हो जाते हैं), तो गौं (गांव) के बीच गुरो (सांप), भला नहीं कुरस्यळो (अशोभनीय प्रजाति का एक मांसाहारी जानवर)। अमुक पुनः अपनी संदर्भित बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल न्योळु (नेवला) स्याळ (सियार) बिरळुं (बिल्ली), जैसे रांदो (रहता) है यखळु (अकेले), मि (मैं यानि अमुक) दळेदर (पेटू दरिद्र) सुंगरुं (सुअरों) के, जैसे खाता है भुखळु (भूखा)।
जनि तीन तिगाड़ा
म्यर काम बिगाड़ा
तनि तीन गोरूंन
बल नाम बिगाड़ा
ना हि बिरोळु छौं
मि नाहि न्योळु छौं
नाहि मि स्याळु छौं
त्रिगोरु बल क्य छौं?
*भावार्थ*
अमुक पहेली खेल के चौथे अंतिम निर्णायक चरण में अपनी संरचनात्मक एवम गुणात्मक विशेषताओं का बखान करते हुए अपनी संदर्भित बात को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि बल जैसे तीन तिगाड़ा, बल काम बिगाड़ा, वैसे ही तीन गोरूंन (जानवरों सियार, बिल्ला और नेवले) ने, तथाकथित खर-पतवार कुरप्वाळा की तरह म्यर (मेरा यानि अमुक) का नाम बिगाड़ा। अंत में अमुक पहेली खेल के अनुसार प्रश्नात्मक शैली में कहता और पूछता है कि बल ना ही बिरोळु (दूध पीता बिल्ली का बच्चा) है, वह ना ही न्योळु (नया नवेला नेवला दूल्हा राजा) है, ना ही वह स्याळु (भ्रामक गंध से भरमाने वाला शेर के खाल में सियार है), *तो बताओ कि त्रिगोरु (तथाकथित तीन जानवरों का ट्रिपलीकरण स्वरूप) बल वह क्या है*?
*जगमोहन सिंह रावत 'जगमोरा'*
*प्रथम पाड़ी पजलकार (थ्री पी)*
*प्रथम पजल सतसई पजलकार*
*मोबाइल नंबर-9810762253*
*नोट*:
*पजल का उत्तर* एक शातिर चित्तचोर की तरह अपनी ओपन निशानदेही के चैलेंज के साथ पजल में ही अंतर्निहित छिपा हुआ होता है।
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कालिका प्रसाद सेमवाल जी
(२)
निर्मल करके तन - मन सारा,
सभी विकार मिटा दो माँ।
कभी किसी को बुरा न कहे,
विनती हमारी स्वीकारो मां।
करूणा, विनय का दान हमें दो,
प्रार्थना करते तुम से मां।
हमारे अन्दर ऐसी ज्योति जगाओ,
जन -जन का उपकार करे।
हममें यदि कोई कमी हो मां,
उससे हमको तुम मुक्ति दिलाओ।
तुम तो दया की सागर हो मां,
हम दीनों पर तुम दया करो।
विद्या, विनय का तुम भण्डार हो,
हम तो निपट अज्ञानी है।
हर दो अन्धकार तन- मन का,
ऐसी हम पर कृपा कर दो मां।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड