।। श्री हरि ।।
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कलियुग की लीला
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धनि कलियुग महराज आपने लीला अजब दिखाई है।
उलटा चलन चला दुनियांमें सबकी मति बौराई है।।
नीति पंथ उठ गया कचहरी पापन आन लगाई है।
धर्म गया पाताल सभी के मन बेशरमी छाई है।।
गुप्त हुए सच्चे वकील झूठोंकी बात सवाई है।
सच्चोंकी परतीति नहीं झूठों की बात सवाई है।।
न्याय छोड़ अन्याय करें राजोंने नीति राँगँवाई है।
हकदारों का हक्क मेट बेहकपर कलम उठाई है।।
जो हैं जाली फरेबवाले उनकी ही बनि आई है।
उलटा चलन चहा दुनियांमें सबकी मति बौराई है।।१।।
गूजर जाट बने संन्यासी पोची बगल दबाई है।
मूड़ मुड़ाकर इक धेले में कफनी लाल रंगाई है।।
पन्थ चले लाखों पाखण्डी अद्भुत कथा बनाई है।
मुँह काला कर दिया किसीने शिरपर जटा रखाई है।।
हुए नीच कुरसी नसीन ऊँचोंको नहीं तिपाई है।
जुगनु पहुँचे आसमान पर जाकर दुम चमकाई है।।
फाँके करते सन्त मिलै भडुओंको दूध मलाई है।
उलटा चलन चला दुनियांमें सबकी मति बौराई है।।२।।
सास बहूसे लड़े बहू भी आँख फेर झुंझलाई है।
लेकर मूसल हाथ कोसती दाँत पीस उठ धाई है।।
घरवालेको छोड़ गैर कर कुलकी लाज गँवाई है।
निज पतिकी सेवा तजकर परपति प्रीति लगाई है।।
पुरुष हुए ऐसे व्यभिचारी विषयवासना छाई है।
वेश्याओं के फन्देमें पड़ घरकी तजी लुगाई है।।
मात पिताकी करै बुराई नारि परम सुखदाई है।
उलटा चलन चला दुनियां में सबकी मति बौराई है।।३।।
ब्याह बुढ़ापेमें जो करते उनपर गजब खुदाई है।
साठ बरसके आप, करी कन्याके सङ्ग सगाई है।।
कुछ दिन पीछे आप मर गये करके रांड बिठाई है।
तगी करन व्यभिचार लाज तजि घर पर लोग हँसाई है।।
पंडित पाथा करें दलाली मंत्री जिनका भाई है।
शर्म रही नहिं बेशर्मोको बेटी बेचकर खाई है।।
बहन भानजी त्यागन करके साली न्योति जिमाई है।
उलटा चलन चला दुनियांमें सबकी मति बौराई है।।४।।
गंगाजल गोरसको छोड़कर गाड़ी भांग छनाई है।
भक्ष्य अभक्ष्य लगे खाने मदिराकी होति एकाई है।।
श्वसुर बहूको कुदृष्टि देख अपनी नियति डुलाई है।
ठट्ठा अरु मसखरी करै सासूसे ज्यान जमाई है।।
कहै भतीजा चचासे अपने तू मूरख सौदाई है।
हमें चैन करनेसे मतलब किसकी चाची ताई है।।
बहिन बहिनसे लड़े और लड़ता भाईसे भाई है।
उलटा चलन चला दुनियांमें सबकी मति बौराई है।।५।।
जामा अगा दिया त्याग अरु पगड़ी फारि बहाई है।
पहन कोट पतलून शीशपर टोपी गोल जमाई है।।
तोड़ तक्ष्त अरु सिंहासनको लाके बेंच बिछाई है।
खीर खाँड़को त्यागन करके रोटी डबल पकाई है।।
तोड़के ठाकुरद्वारा मसजिद सबकी करी सफाई है।
गिरजाघर में जा करके ईसाकी करी बड़ाई है।।
बात करै सब अंगरेजीमें निज भाषा विसराई है।
उलटा चलन चला दुनियांमें सबकी मति बौराई है।।६।।
मित्र शत्रुसम हुए प्रीतिकी डाली तोड़ जलाई है।
विद्या बिन हो गये विप्र गायत्री तलक भुलाई है।।
क्षत्रिय बैठे नारी बनकर ले तलवार छिपाई है।
शूद्र हुए धनवान ब्राह्णणों ने कीन्ही स्योकाई है।
गयाबाल और मथुराके चौयोंकी बात बनि आई है।।
बन आईना कुछ बनियों से माया मुफ्त जुटाई है।।
चारों युगोरो कलिने अपनी नई नीति दिखलाई है।
उलटा चलन चला दुनियांमें सबकी मति बौराई है।।७।।
अपूज पूजे लगे कह सब शिरपर देवी आई है।
घर घरमें गुलगुले शेख सहोकी चढ़ी कढ़ाई है।।
परब्रह्मको छोड़ भूत प्रेतोंकी दई दुहाई है।
मूंड हिलाती कही मतिनि या कहैं कुसुम्पी माई है।।
बालभोग ठाकुरको नहिं सय्यदके लिये मिठाई है।
सन्तको कंबल नहीं पतुरियाको कुरती सिलवाई है।।
गुरु हरै चेलोंका धन चेला करता चतुराई है।
उलटा चलन चला दुनियांमें सबकी मति बौराई है।।८।।
विधवा लग गई पान चबाने दे गुरमा मुगुकाई है।
नित करती श्रृंगार देखकर अहिवाती शरमाई है।।
बैठे ज्वारी और अगामी हुआ जगत अन्यायी है।
सब लक्षण विपरीत और घर घरमें होत लड़ाई है।।
गाय जाय लाखों मारी करता नहिं कोई सुनाई है।
इसीसे पड़ता काल सृष्टिमें संपति सकल बिलाई है।।
हो दयाल हे नाथ! आज कलयुगकी महिमा गाई है।
उलटा चलन चला दुनियांमें सबकी मति बौराई है।।९।।