------: महाकुंभ :-------
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[ महाकुंभ में भाग लेने वाले वर्ग व उनकी मान्यताएँ ]
महाकुंभ मेला, सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए, सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण आयोजनों में से एक है। इसमें समाज के विभिन्न वर्गों, साधु-संतों, धर्माचार्यों, श्रद्धालुओं और पर्यटकों की भागीदारी होती है। इनकी मान्यताओं और उद्देश्यों को, विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है।
1- महाकुंभ में भाग लेने वाले प्रमुख वर्ग ~
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(1) साधु-संत~
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● अखाड़े ----- 13 प्रमुख अखाड़े महाकुंभ में भाग लेते हैं। ये विभिन्न संप्रदायों से जुड़े होते हैं, जैसे शिव संप्रदाय (शैव), विष्णु संप्रदाय (वैष्णव), और साधु संप्रदाय (उदासीन)।
● नागा साधु ----- ये नग्न होकर, तपस्या और सन्यास जीवन का प्रतीक होते हैं। नागा साधु , कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण होते हैं।
● महामंडलेश्वर ----- ये अखाड़ों के सर्वोच्च धर्मगुरु होते हैं, जो कुंभ में प्रवचन और धार्मिक नेतृत्व प्रदान करते हैं।
(2) गृहस्थ श्रद्धालु ~
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● सामान्य लोग, जो परिवार सहित कुंभ में आते हैं।
● इनका मुख्य उद्देश्य पवित्र स्नान, दान और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करना है।
(3) धर्माचार्य और विद्वान ~
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● धार्मिक ग्रंथों का पठन-पाठन, प्रवचन, और धार्मिक सभाएं आयोजित करते हैं।
● धर्म और संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते हैं।
(4) विदेशी श्रद्धालु और पर्यटक ~
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● कुंभ का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व जानने के लिए, विदेशी लोग भी इसमें भाग लेते हैं।
● यह आयोजन भारतीय संस्कृति का वैश्विक मंच है।
2- महाकुंभ में मान्यताएँ ~
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(1) पवित्र स्नान का महत्व ~
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●मान्यता है कि, कुंभ के समय संगम (गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती) में स्नान करने से, पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
● ग्रहों की विशेष स्थिति (ब्रह्मांडीय ऊर्जा), इस समय जल को अत्यंत पवित्र और औषधीय बनाती है।
(2) अमृत प्राप्ति की कथा ~
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● समुद्र मंथन के समय, अमृत कलश से अमृत की बूंदें कुंभ स्थलों पर गिरी थीं। इसलिए, ये स्थान दिव्य माने जाते हैं।
● कुंभ में स्नान को , अमृत-स्नान के समान माना गया है।
(3) दान और धर्म का महत्व ~
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● कुंभ में दान (अन्न, वस्त्र, धन) को, अति पुण्यकारी माना जाता है