प्राचीन भारत और हिन्दू संस्कृति मे स्त्रियो की दशा

 

प्राचीन भारत और हिन्दू संस्कृति मे स्त्रियो की दशा 


शंकराचार्य के समय मंडप मिश्र की पत्नी शास्त्रो की अच्छी ज्ञाता थी। कवि राजशेखर की पत्नी अवंति सुंदरी, भास्कराचार्य की पुत्री लीलावती, हर्ष की बहन राज्यश्री भी अपने काल की विद्यावान स्त्रियों में गिनी जाती है। हर्ष चरितावली में उल्लेख है कि रानियां चित्रकला, गायन, वादन, नृत्य आदि बहुत अच्छे से जानती थी, और यही शिक्षा वह अपनी प्रजा को देती थी। प्रत्येक हिन्दू शास्त्र स्त्रियों को देवीतुल्य मानता है। स्मृतियों में स्त्री को पिता, गुरु, ब्राह्मण से भी कहीं अधिक आदर और मान के योग्य बताया है।


हिन्दू धर्म के आदि शक्ति का स्वरूप भी नारी को ही माना गया है। मानव सभ्यता के तीन आधार स्तंभ – बुद्धि,शक्ति और धन तीनों की अधिष्ठात्री देवियाँ हैं। यह गौर करने योग्य विषय है कि —


बुद्धि की देवी माँ सरस्वती

धन की देवी माँ लक्ष्मी

शक्ति की देवी माँ दुर्गा,माँकाली समेत नौ रूप

वेदों की देवी माँ गायत्री


यहां तक कि हम अपने देश को भी माता कहते है। जल के रूप में प्राणीमात्र का तर्पण करने वाली गंगा यमुना सरस्वती को भी माता का रूप ही माना गया है।


वेद स्त्री को लेकर कितने उच्च विचार रखते है, आप स्वयं जानिएं :--


स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का अधिकार है

(यजुर्वेद 17.45)


स्त्रियों की सेना हो और उन्हें युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें

(अथर्ववेद 11.5.18)


बह्मचर्य सूक्त - इसमें कन्याओं को बह्मचर्य और विद्याग्रहण के पश्चात् ही विवाह के लिए कहा गया है

अथर्ववेद 7.48.2


हे स्त्री! तुम हमें बुद्धि से धन दो। विदुषी, सम्माननीय,विचारशील,प्रसन्नचित्त स्त्री सम्पत्ति की रक्षा और वृद्धि करके घर में सुख लाती है

अथर्ववेद 2.36.5.


भारतीय समाज मे पुरुष को स्त्री के बिना तो साधारण यज्ञ तक का अधिकार नही है। श्रीराम सीता वियोग के समय श्रीराम को पूजन में मां सीताजी की स्वर्ण प्रतिमा बनवानी पड़ी थी, जिससे पत्नी वामांग में विराजे ओर यज्ञ पूर्ण हो ...


भारत मे पर्दा प्रथा कभी नही थी, यह प्रथा विदेशी आक्रमणों के कारण शुरू हुई, भारत मे रात्रि विवाह का प्रचलन भी नही था, क्यो की आर्य संस्कृति में सभी शुभकार्य सूर्य की रोशनी में सम्पन्न होते थे। पर्दा प्रथा और रात्रि में विवाह का कारण एक ही था, हिन्दू संस्कृति के शत्रुओं की नजर से बहन बेटी को बचाएं रखना।


इसके उलट अन्य धर्मों में स्त्रियों की क्या दशा है? इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, इस्लाम मे स्त्रियों को कभी मौलवी नही बनाया गया, ओर ईसाइयत में उन्हें कभी पादरी या पोप नही बनाया गया।

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