भक्तों के कष्टों को दूर करती है मां श्यामा


भक्तों के कष्टों को दूर करती है मां श्यामा

दरभंगा : शारदीय नवरात्रा को लेकर एक ओर जहां आम लोगों में उत्साह देखा जा रहा है। वहीं दूसरी ओर इस अवसर पर साधक अपनी साधना से भगवती का आशीर्वाद पाने का प्रयास कर रहे हैं। कौल परंपरा से साधना करने वालों के लिए श्मशान भूमि सबसे उत्तम होती है। इसलिए दरभंगा में महाराज परिवार के निज श्मशान माधवेश्वर प्रांगण और शुभंकरपुर स्थित सतिस्थान के श्मशान में वर्षों पूर्व से ही साधनाएं होती रही हैं। आज भी माधवेश्वर प्रांगण स्थित श्रीरमेश्वरी श्यामा ऐसे साधकों के लिए प्रिय स्थली है। हलांकि इस परिसर में अन्य मंदिर भी चिताओं पर अवस्थित हैं, लेकिन भक्तों ने मां श्यामा अधिक आकर्षण का केन्द्र हैं। 1933 ई. में महाराजा कामेश्वर सिंंह ने महाराजा रमेश्वर सिंह की चिता पर सदाशिव के साथ नागयज्ञोपवितांगी मां श्यामा की कसौटी पत्थर से निर्मित भव्य और विशाल प्रतिमा विदेश से हवाई जहाज द्वारा मंगाकर काली पूजा (दीपावली) के दिन स्थापित की थी। महाराजा रमेश्वर सिंह के साथ कई अनुष्ठानों के सहकर्मी वर्तमान में मधुबनी जिला के हंइठीवाली ग्राम निवासी व्यास पं. सीताराम झा के द्वारा प्राण प्रतिष्ठा पूजन महाराजा ने कराया था। आज उन्हीं के परिवार की चौथी पीढ़ी पं. शरद कुमार झा अपने प्रपितामह द्वारा निर्देशित पूजन पद्धति से मां श्यामा की आराधना करते हैं। उल्लेखनीय है कि गर्भगृह में सदाशिव के साथ विराजमान मां श्यामा के अलावा महाकाल, बटुक और गणेश का भी विग्रह है। यह मंदिर साधकों के लिए तो प्रिय रहा ही है, लेकिन समय के साथ अब साधकों का आना बहुत कम हो गया है। वहीं आम दर्शनार्थी दूर-दूर से आते हैं। वैसे तो छागर का बलि प्रदान पूरे साल होता है, लेकिन नवरात्रा में विशेष रूप से यहां बलि प्रदान की परंपरा अब तक कायम है। वस्तुत: मिथिला के भगवती स्थानों में बलि प्रदान की पुरानी परंपरा रही है। दर्शनार्थी राग-द्वेष को छोड़कर जब मां श्यामा की सीढ़ी पर चढ़ता है, तो सबसे पहले जगमोहन में प्रवेश करता है। जहां की छत में सूर्य-चंद्र, नवग्रह सहित ब्रह्मांड को तंत्र विधि से उकेरा गया है। इस प्रकार मान्यता है कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड का परिभ्रमण कर जब मानव माता की शरण में आता है और हृदय से पुकारता है, तो उसकी मनोवांछित कामना पूरी होती है। वैसे भी श्मशानवासिनी मां श्यामा जब महाकाल के साथ इस स्थान पर पूजित हैं, तो काल की गति पर विराम लगना स्वाभाविक है। मां श्यामा की अमावश्या, पूर्णिमा, अष्टमी सहित विभिन्न तिथियों पर पूरे वर्ष विशेष पूजा-अर्चना होती है। वहीं वर्ष के चारों नवरात्रों में तिथियों के अनुसार पं. शरद कुमार झा पूरी निष्ठा और लगन से मां श्यामा का पूजन करते हैं। शारदीय नवरात्रा के अवसर पर भी प्रत्येक दिन व रात्रि में परंपरा के अनुसार पूजन किया जाता है। यहां यह उल्लेख कर देना आवश्यक प्रतीत होता है कि महाराजा रमेश्वर सिंह जिनकी ठीक चिता पर मां श्यामा सदाशिव के साथ विराजमान हैं। वह स्वयं भी तंत्र साधक के रूप में सनातनी कौल परंपरा में विशेष स्थान रखते हैं। उन्होंने दरभंगा के अलावा कई जगहों पर मां श्यामा का मंदिर बनवाया था और भारत के विभिन्न धार्मिक स्थानों पर तंत्र साधना की थी। इस प्रकार कौलावधूत महाराजा रमेश्वर सिंंह की चिता पर अवस्थित मां श्यामा का प्रेम पूर्वक दर्शन ही कष्टों को दूर करता है।

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