चिट्ठीपत्री रंत-रैबार.. संदेश मैसेज मन की पुकार
-=============================== समाधान का अंतिम विकल्प- आओ मिलजुल कर ले संकल्प.. 👨👩👧👨👩👧👦👨🎨👨🚀👷♀👸👷♂
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हिमालय बचाओ अभियान कुछ वर्षों से प्रतिवर्ष 9 सितंबर को आयोजित होता है, यह एक सराहनीय प्रयास है, और जितनी तारीफ की जाए उतनी भी कम है इस कार्य में लगे है सभी सामाजिक सहयोगियों पर्यावरणीय संस्थाओं एवं सभी सहयोगी शुभचिंतकों को शुभकामना के साथ-साथ साधुवाद ..... किंतु बड़े स्तर पर सरकार शासन की तरफ से हिमालय बचाने हेतु उचित कारगर प्रयास नहीं किए जा रहे हिमालय को बचाने के साथ साथ देवभूमि पहाड़ का भी ध्यान रखना है देवभूमि पहाड़ इसी हिमालय का एक भाग है जिसको बचाने के बारे में कार्ययोजना बनानी होगी यदि हिमालय संरक्षण के साथ-साथ देवभूमि पहाड़ के बारे में अच्छी योजना बने तो पहाड़ों से पलायन सहित अन्य तमाम समस्याओं का उचित समाधान हो पाएगा, इसी हिमालयी पहाड़ी क्षेत्र को विकसित करने उत्थान करने हेतु सकारात्मक प्रयास राज्य आंदोलन प्रारंभ हुआ था... अतः ज्यादा ना कहते हुए सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि राज्य बनने के बाद जो हिमालय का आधार है देवभूमि पहाड़ इसका विकास नहीं बल्कि विनाश हुआ है .... यहां की भूमि पर बाहरी अतिक्रमण जल जंगल जमीन पर यहां के मूल निवासियों का कोई अधिकार नहीं है बाहरी बांग्लादेशी अथवा रोहिंग्या अथवा अन्य कोई भी यहां जमीन खरीदकर अथवा किसी भी तरह छल कपट धोखा करके अपनी झोपड़ी बनाकर धीरे-धीरे पक्का मकान बन चुके हैं और वे लोग भी यहां किसी विशेष मकसद से बसे होंगे वह अपने उद्देश्य को अपने मकसद को अपने लक्ष्य को पूरा करने पर लगे हैं जड़ी बूटियां जंगल दोहन नदी गाड गधेरे का उत्खनन जंगली पशु धीरे-धीरे कम हो रहे हैं और पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है तभी तो हिमालय पर बड़े-बड़े घाव हो चुके हैं .... हम ठेट पहाड़ी लोग भी इन्हीं बाहरी व्यक्तियों की श्रेणी में आ चुके हैं सबका स्थाई निवास प्रमाण पत्र इस प्रकार हिमालय हिमालय वासी अर्थात पहाड़ वासी और अन्य प्रवासी रैवासी सब एक ही श्रेणी में आ चुके हैं ... तो फिर क्या फायदा रहा हमारा अलग उत्तराखंड राज्य का हमारा स्वाभिमान हमारी संस्कृति हमारी आवश्यकता हमसे दूर होती जा रही है अतः सर्वप्रथम मूल निवास 1950 लागू हो उसी के बाद जल जमीन और जंगल बच पाएंगे फिर पहाड़ सुरक्षित रहेगा तो हिमालय भी सुरक्षित होगा ही इसके लिए जो भी आवश्यक हो उसे पूरा करना होगा यह कार्य सर्वप्रथम बुद्धिजीवी पर्यावरणविद् सहित सरकार एवं न्यायालय का है और उसके बाद यहां के रैवासियों मूल निवासियों का है, जिनके द्वारा वास्तव में पहाड़ और हिमालय का वास्तविक संरक्षण होना है ऐसी शुभअपेक्षा एवं मंगलकामना है।
(समाधान का अंतिम विकल्प)