इब्राहीम बोहरा
औद्योगिकरण के इस युग में हर बड़ी - बड़ी मशीनों और भरी भरकम वाहनों का संचालन और आवागमन आज के भारत में एक सर्वसामान्य दृश्य है। वैसे तो भारत में औद्योगिकरण वर्ष 1854 में मुंबई की प्रथम भाप ऊर्जा चलित कपड़ा मिल से शुरू हुआ किंतु वर्ष 1991 में डॉ. मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री बनने के बाद के उदारीकरण के दौर में औद्योगिकरण ने व्यापक रूप लिया।
हालांकि इस व्यापक औद्योगिकरण के कई नकारात्मक प्रभाव भी आए जिसमें छोटी सड़कों पर बड़े और भरी वाहनों के गुज़रने से होने वाली ट्रैफिक जाम की समस्या सबसे आम है जिससे कि भारत कोई छोटा या बड़ा कस्बा अछूता नहीं रह गया है।
यही हाल नीमच जिले के एक छोटे से नगर जावद का भी है। यहां बस स्टैंड के समीप सड़क संकीर्ण होने के कारण प्रतिदिन, दिन में कई बार, कई मिनटों के लिए ट्रैफिक जाम की परिस्थितियां बन जाती है जो कि अब दुकानदारों और राहगीरों के लिए नासूर बन चुकी है। दिन हो या रात इस मार्ग पर बड़े और भरी वाहन जैसे डंपर, ट्रक, ट्रेलर इत्यादि का आवागमन निरंतर जारी रहता है और इसका वर्तमान में कोई विकल्प भी नहीं है।
जब - जब बड़े शहरों में इस प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती है तो प्रशासन इसका एक ही उपाय निकालता है जिसे हम बायपास के नाम से जानते है। बायपास सड़क एक ऐसी सड़क है जो किसी कस्बे या शहर से ट्रैफिक को सीधे उस क्षेत्र से गुज़रे बिना उस क्षेत्र की सीमा के बाहर से बायपास कर दिया जाता है।
ऊपर दर्शाए गए मानचित्र के अनुसार यदि तिरंगा चौराहा रूपारेल से आई. टी. आई. कॉलेज और विमुक्त जाति छात्रावास होते हुए एक मार्ग सीधा सेगवा रोड पर निकाला जाए जो कि वर्तमान में कच्चा मार्ग है तो भरी वाहनों को बिना किसी रुकावट के सेगवा होते हुए जावद नगर के बाहर से बायपास किया जा सकता है।
साथ ही इस मार्ग के बन जाने से वर्तमान में कच्ची सड़क के कारण परेशानियां झेल रहे रूपारेल निवासियों और आई. टी. आई. और छात्रावास के विद्यार्थियों को भी आराम मिल जाएगा। और तो और इस मार्ग की कुल लंबाई 1.5 किलोमीटर मात्र है जो कि वर्तमान में कच्ची सड़क है जिसका सीधा फायदा यह होगा कि प्रशासन को इसके लिए कोई अतिरिक्त भूमि भी अधिग्रहित नहीं करनी होगी और ना ही कोई विवाद उत्पन्न होगा।