उदयपुर के चावंड स्थित ऐतिहासिक कटावला मठ के महंत और विप्र फाउंडेशन के संरक्षक **महंत हितेश्वरानंद सरस्वती महाराज** को प्रयागराज महाकुंभ 2025 में महामंडलेश्वर की प्रतिष्ठित उपाधि से सम्मानित किया गया। यह पहली बार है जब मेवाड़ क्षेत्र के किसी संत को यह गौरव प्राप्त हुआ है। सनातन परंपरा में महामंडलेश्वर का पद **शंकराचार्य के बाद दूसरा सबसे बड़ा आध्यात्मिक और धार्मिक पद** माना जाता है।
### **प्रयागराज महाकुंभ में हुआ ऐतिहासिक समारोह**
माघ मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि, 26 जनवरी 2025 को, प्रयागराज महाकुंभ में **श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी** द्वारा एक भव्य धार्मिक आयोजन में महंत हितेश्वरानंद सरस्वती महाराज का **पट्टाभिषेक** किया गया।
इस समारोह में महानिर्वाणी पीठाधीश्वर **स्वामी विशोकानंद भारती**, अखाड़े के प्रमुख संतों और हजारों भक्तों की उपस्थिति में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ दूध और गंगाजल से अभिषेक किया गया। इसके पश्चात उन्हें पुष्पमालाओं और चादर से सम्मानित किया गया।
पट्टाभिषेक के बाद अखाड़े द्वारा एक भव्य **भंडारे** का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। यह आयोजन आध्यात्मिक परंपराओं और सनातन धर्म की गौरवशाली धरोहर का प्रतीक बना।
### **महंत हितेश्वरानंद सरस्वती का आध्यात्मिक सफर**
पाली जिले के चाणोद गांव में जन्मे स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती महाराज का वास्तविक नाम **घनश्याम बाव जी** है। उनका जन्म श्रीमाली ब्राह्मण परिवार में हुआ, जहां उनकी माता **मां हुलासी देवी जी** और ननिहाल कुंभलगढ़ केलवाड़ा में स्थित था। प्रारंभिक जीवन से ही घनश्याम बाव जी का झुकाव धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन की ओर था।
**स्वामी दुर्गेशानंद सरस्वती महाराज**, जो हरिद्वार के **मानव कल्याण आश्रम** के परमाध्यक्ष हैं, ने 2021 में घनश्याम बाव जी को संन्यास दीक्षा देकर **स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती** के नाम से दीक्षित किया। दीक्षा के बाद से वे कटावला मठ में निवास कर रहे हैं।
### **कटावला मठ: मेवाड़ की ऐतिहासिक धरोहर**
चावंड स्थित कटावला मठ 550 वर्ष पुराना जागनाथ महादेव मंदिर है, जिसे महाराणा प्रताप की निर्वाण स्थली के रूप में भी जाना जाता है। यह स्थान मेवाड़ की समृद्ध धार्मिक परंपरा का प्रतीक है। स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती महाराज पिछले 14 वर्षों से मठ में रहकर साधना और समाज सेवा का कार्य कर रहे हैं।
कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति आदिवासियों के कल्याण के लिए दान कर दी। उनके इस परोपकारी कार्य ने उन्हें देश और विदेश में ख्याति दिलाई। आज वे सिर्फ मेवाड़ ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में सनातन धर्म और समाज कल्याण के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
### **महामंडलेश्वर बनने का महत्व और प्रक्रिया**
महामंडलेश्वर का पद सनातन धर्म में सर्वोच्च आध्यात्मिक और धार्मिक पदों में से एक है। इसे प्राप्त करने के लिए साधु-संतों को कठोर साधना, सेवा और आध्यात्मिक तपस्या के माध्यम से उच्च मानकों को स्थापित करना होता है।
अखाड़े में महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया लंबी और कठिन होती है। संतों को पहले **संन्यासी**, फिर **महापुरुष**, **कोतवाल**, **थानापति**, **महंत**, और अंततः **महामंडलेश्वर** बनाया जाता है।
महामंडलेश्वर बनने के लिए पट्टाभिषेक के दौरान वैदिक मंत्रोच्चार के साथ दूध, घी, शहद, दही, और शक्कर से बने पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। इस दौरान अखाड़े के वरिष्ठ संत और महंत समाज चादर भेंट कर सम्मानित करते हैं। यह पद न केवल साधना और तपस्या का प्रतीक है, बल्कि धर्म प्रचार, समाज सेवा, और सनातन परंपरा के संरक्षण का दायित्व भी सौंपता है।
### **महानिर्वाणी अखाड़ा: भारत की गौरवशाली परंपरा**
**श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी**, जो भारत का दूसरा सबसे बड़ा अखाड़ा है, की स्थापना लगभग 1200 वर्ष पहले अटल अखाड़े के 8 संतों ने की थी। अखाड़े का इष्ट देव **कपिल भगवान** हैं। अखाड़े की पहचान उसकी प्राचीन परंपराओं और लोकतांत्रिक प्रणाली से की जाती है। वर्तमान में इसमें लगभग 70 महामंडलेश्वर हैं।
महामंडलेश्वर हितेश्वरानंद सरस्वती महाराज को इस अखाड़े से जोड़े जाने का निर्णय संत समाज की सर्वसम्मति से लिया गया, जो मेवाड़ क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
### **मेवाड़ के लिए गौरव का क्षण**
महंत हितेश्वरानंद सरस्वती महाराज का महामंडलेश्वर बनना मेवाड़ क्षेत्र के लिए गर्व का विषय है। उनकी तपस्या, सेवा, और आध्यात्मिक योगदान ने मेवाड़ की धार्मिक परंपराओं को वैश्विक पहचान दिलाई है।
उनका यह सम्मान यह संदेश देता है कि सच्ची साधना और सेवा के माध्यम से कोई भी साधु अपने धर्म, समाज और देश का गौरव बढ़ा सकता है। आज, मेवाड़ के संतों और उनकी भक्ति परंपरा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है।
महामंडलेश्वर हितेश्वरानंद सरस्वती महाराज का यह आध्यात्मिक सफर प्रेरणादायक है और आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।