''चीन की दीवार'' लांघ कर गुकेश बने सबसे युवा विश्व चैम्पियन


''चीन की दीवार'' लांघ कर गुकेश बने सबसे युवा विश्व चैम्पियन

12 दिसम्बर 2024। सिंगापुर के सेंटोसा द्वीप पर स्थित एक्वेरियस होटल में चल रहे शतरंज के विश्व चैंपियनशिप के अंतिम गेम पर पूरे विश्व के शतरंज प्रेमियों की निगाहें लगी हुई है। अब तक हुए 13 गेमों में चीन के वर्तमान विजेता 32 वर्षीय डिंग लिरेन और उन्हें चुनौती दे रहे 18 वर्षीय भारतीय युवा गुकेश दोनों ने 2-2 गेम जीतकर और बाकी 9 गेम ड्रॉ कर 6.5-6.5 अंकों के साथ बराबरी पर चल रहे हैं। इस मैच के हार-जीत पर विश्व विजेता का फैसला होना है। ड्रॉ रहने पर अगले दिन यानी शुक्रवार को टाईब्रेकर के माध्यम से विजेता का चुनाव होगा। इस अंतिम गेम में दोनों अब तक 54-54 चाल चल चुके हैं। दोनों के पास राजा का साथ देने के लिए एक-एक रूक ( हाथी) के अलावा एक-एक सफेद बिशप ( ऊंट) हैं, पर गुकेश के पास डिंग के एक पाउन ( पैदल) के बदले दो पैदल सिपाही हैं। पर शतरंज विशेषज्ञों और चेस इंजन की नजरों में इससे उन्हें कोई बहुत फायदा नहीं मिलने वाला है। सबकी राय है कि अगर कोई खिलाड़ी ब्लंडर नहीं करता है तो ये गेम ड्रॉ होने वाला है। 50 वें चाल के बाद सूसन पोल्गर डिंग को बार-बार बिना ज्यादा समय लिए रूक की चाल चलते देख अपनी ट्विटर पर लिखती है कि डिंग शायद कल होने वाले टाईब्रेकर के लिए अभी से अभ्यास करना शुरू कर दिया है।

हालांकि दो घंटे की समय सीमा के अंदर जब दोनों खिलाड़ियों ने 40-40 चालें पूरी कर ली तभी से शतरंज विशेषज्ञ ड्रॉ की भविष्यवाणी करने लग जाते हैं।पर अंग्रेजी में एक कहावत है :- '' It is not over until it is over.'' . गुकेश इसी कहावत को ध्यान में रखते हुए डिंग के द्वारा कई बार अप्रत्यक्ष रूप से दिये गए ड्रॉ के प्रस्ताव को नकार चुके हैं, जबकि डिंग सफ़ेद मोहरों से खेल रहे हैं और कोई भी खिलाड़ी अगर काले मोहरों से खेल रहा हो तो बराबरी की स्थिति में ड्रॉ के प्रस्ताव को खुशी-खुशी स्वीकार कर लेता। पर विश्व के नंबर 1 खिलाड़ी और पूर्व विजेता कार्लसन की तरह गुकेश भी आसानी से ड्रॉ के प्रस्ताव को नहीं मानने में विश्वास रखते हैं। कल 13 वीं बाजी में भी तो उन्होने डिंग को काफी देर तक खेलते रहने पर मजबूर किया। वे इस गेम को भी अभी और खेलना चाहते हैं।

इधर डिंग शायद मानसिक थकावट या ध्यान कल के संभावित टाईब्रेकर पर होने से एकाग्रता भंग होने के चलते, या गेम को जल्दी से खत्म करने के इरादे से रूक एक्सचेंज करने के निश्चय कर सफ़ेद मोहरों से अपनी 55 वीं चाल Rf2 चल देते हैं।और यहीं उनसे चूक हो जाती है, ब्लंडर हो जाता है। गुकेश को मानो इसी की तलाश रहती है। वे झट से रूक एक्स्चेंज कर लेते हैं और जल्दी ही बिशप भी। अब गुकेश के पास जहां राजा के साथ दो पैदल बचते हैं डिंग के पास सिर्फ एक। हार सामने देखकर डिंग रिजाइन कर देते हैं। ''चीन की दीवार'' टूट जाती है। उधर गुकेश रो पड़ते हैं। पर ये विश्वविजेता बनने पर खुशी के आँसू हैं। ग्लास बॉक्स से बाहर आने के बाद भावुक होकर वे कह उठते हैं :-

'' 11 साल पहले 2013 में जब चेन्नई में मैं जब विश्व चैंपियनशिप का मैच देख रहा था तो ये खिताब भारत से बाहर चला गया था। तब स्टैंड में खड़े होकर ग्लास बॉक्स की ओर देखकर सोच रहा था कि इसके एक दिन अंदर बैठना कितना शानदार होगा। और तब मैगनस जीत गए और तभी मैंने सोचा कि एक दिन इस खिताब को वापस भारत लाऊँगा। 10 पहले देखा गया ये स्वप्न मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाग बन गया। आज उस स्वप्न प्राप्त करने से बेहतर शायद मेरे लिए, मेरे प्रिय लोगों के लिए और मेरे देश के लिए और कुछ नहीं हो सकता था।''

मात्र 18 वर्ष में सबसे कम उम्र का विश्व विजेता वही बन सकता है जिसने बचपन से ही इस स्वप्न को साथ लेकर बड़ा हुआ हो। पिछले 11 वर्षों से गुकेश यही करते चले आ रहे हैं। और इसमें उनका साथ दिया विश्वनाथन आनंद ने उनका मेंटोर बनकर, जिनसे कि 11 साल पहले कार्लसन ने ये खिताब छीन लिया था।

29 मई 2006 को को चेन्नई में पैदा हुए गुकेश के पिता, रजनीकान्त एक ई.एन.टी. सर्जन हैं और उनकी माँ पद्मा एक सूक्ष्म जीवविज्ञानी हैं। उन्होंने सात साल की उम्र में शतरंज सीखा और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे 12 साल, 7 महीने और 17 दिनों की उम्र में 15 जनवरी, 2019 को इतिहास में दूसरे सबसे कम उम्र के ग्रांडमास्टर बने। फिर 2024 में टोरंटो में मात्र 17 साल की उम्र में कैंडिडेट चैंपियनशिप का विजेता बनकर कास्परोव केआर रिकॉर्ड को तोड़ दिया और कल सबसे कम उम्र में विश्व विजेता बनकर एक बार फिर से कास्पारोव के सबसे कम उम्र में विजेता बनने का रिकॉर्ड तोड़ दिया।

ऐसे में मुझे याद आ रहा है साल 1984 जब मैंने शतरंज खेलना और इसे फॉलो करना शुरू किया था। ये वही साल था जब गैरी कास्परोव, जिनका रिकॉर्ड गुकेश ने तोड़ा है, मात्र 22 वर्ष की आयु में कैंडिडेट्स विजेता बनकर तब के विश्व चैंपियन अनातोली कारपोव को चुनौती देने की पात्रता हासिल की था। मुझे याद है इसके बाद अगले तीन सालों तक पूरा विश्व शतरंज के इन दो दिग्गज खिलाड़ियों के बीच का संघर्ष देखता रहा था। अंततः बहुत कम अंतरों से कास्परोव विजेता बने और दो बार कारपोव की चुनौती को झेलकर निर्विवाद विजेता साबित हुए थे। पर उस दौर में शतरंज में भारत की स्थिति किसी भी गिनती में नहीं थी। भारत में एक भी ग्रैंड मास्टर नहीं था। सबसे अधिक रेटिंग वाले इंटरनेशनल मास्टर प्रवीण थिप्से हुआ करते थे। दिव्येंदु बरुआ एक उभरते हुए खिलाड़ी के रूप में सबको प्रभावित कर रहे थे। यह देखकर मुझे आश्चर्य होता था क्योंकि भारत में शतरंज न सिर्फ बेहद लोकप्रिय खेल था, बल्कि कहा जाता है कि शतरंज का जन्म भारत में ही हुआ था।

पर 90 के दशक आते-आते भारतीय शतरंज में उदय होता है भारत के पहले विश्व विजेता विश्वनाथन आनंद का। उनके खेल को देखकर जल्दी ही उनके विश्व चैंपियन बनने की भविष्यवाणी की जाने लगी थी। इसी बीच 1993 में विश्व शतरंज दो भागों में बंट गया। FIDE के अलावा गैरी कास्परोव के नेतृत्व में PCA के रूप में एक अलग संगठन बन गया। PCA के विजेता कास्परोव थे तो FIDE के विजेता कारपोव थे। विश्वनाथन आनंद के विजेता बनने की राह में ये दोनों महान खिलाड़ी खड़े थे। 1995 में आनंद PCA फाइनल के लिए कामस्की को हराकर क्वालीफाई कर चैंपियन कास्परोव को चुनौती दी। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हुए फाइनल में उन्होंने 8 गेम लगातार ड्रा होने बाद 9 वें गेम में कास्परोव के सिसिलियन रक्षा पंक्ति को तोड़ने में कामयाब हुए। पर अगले 5 मैचों में 4 मैच हारकर चैंपियन बनने से वंचित रह गए। 1998 में उन्होंने FIDE चैंपियन कारपोव को चुनौती दी पर एक कड़े मुकाबले में हार गए। पर 2000 में FIDE चैंपियन बन कर भारत के पहले विश्व विजेता बन गए। उधर उसी साल PCA फाइनल में क्रामनिक ने कास्पारोव को हरा दिया। पर अभी भी विश्व शतरंज दो भागों में बंटा था और किसी एक विजेता को अधूरा विजेता समझा जाता था।

2007 में एक बार फिर वे FIDE चैंपियन बन गए। अगले साल दोनों शतरंज संगठन में एकीकरण हो गया और आनंद और क्रैमनिक के बीच निर्विवाद विश्व विजेता बनने के लिए मुकाबला हुआ जिसमें आनंद जीतकर निर्विवाद विश्व विजेता बन गए। उसके बाद उन्होंने रि मैच में एक बार फिर क्रैमनिक को मात दी। फिर 2010 में टोपालोव और फिर 2012 में बोरिस गेलफेंड को हराकर अपने ख़िताब की रक्षा की। पर 2013 में अपने युवा प्रतिद्वंदी और कास्परोव के बाद सबसे प्रतिभावान खिलाड़ी कार्लसन से हार गए। 2014 में कैंडिडेट्स जीतकर एक बार फिर उन्होंने कार्लसन को चुनौती दी, पर अपनी बढ़ती उम्र और कार्लसन के खेल में लगातार हो रहे सुधार के सामने बेबस से दिखाई दिए।

2013 का चैंपियनशिप चेन्नई में हुआ था जिसे स्टैंड से 7 वर्षीय गुकेश ने देखा था और देखने के बाद इस खिताब को दोबारा वापस भारत में लाने का स्वप्न देखा था। कार्लसन अगले 10 सालों तक निर्विवाद विजेता बने रहे। पर 2023 में इस फॉर्मेट से नाखुश होकर उन्होने अपने आप को इस प्रतियोगिता से अलग कर लिया। उनकी अनुपस्थिति में डिंग लीरेन इयान नेपोम्नियाचची को हराकर चीन के पहले विश्व विजेता बन गए। 

पर उसके बाद डिंग का फॉर्म खराब रहने लगा और विश्व रैंकिंग में 23वें स्थान पर चले गए। इधर गुकेश लगातार फॉर्म में चल रहे थे। कैंडिडेट जीतने के बाद वे सितंबर में हुए ओलंपियाड में भी शानदार प्रदर्शन कर न सिर्फ भारत को स्वर्ण पदक जीतने में मदद की, बल्कि खुद भी व्यक्तिगत स्वर्ण जीता। ऐसे में 25 नवम्बर को जब विश्व चैंपियनशिप शुरू हुए तो सबने गुकेश के जीतने की भविष्यवाणी करनी शुरू कर दी। 

पर पहले ही मैच में थोड़ा नर्वस रहने के चलते गुकेश टाइम प्रेशर में आ गए और सफ़ेद मोहरों से खेलने के बावजूद अंत में जल्दी-जल्दी चाल चलने के चलते गलती कर बैठे। उधर डिंग अपने पुराने फॉर्म को प्राप्त करते दिखे। पर इसके बाद गुकेश ने जबरदस्त वापसी की। दूसरे गेम को काले मोहरों से खेलते हुए ड्रॉ करने के बाद उनका आत्मविश्वास बढ़ गया और तीसरे गेम में सफ़ेद मोहरों से खेलते हुए उन्होने डिंग पर जबरदस्त दबाव बनाया। दबाव के चलते इस बार डिंग टाइम प्रेशर में आ गए और गलती कर बैठे। मुक़ाबला बराबरी पर आने के बाद 7 वें और 8 वें गेम में गुकेश के पास जीतने के अवसर थे पर डिंग के शानदार रक्षात्मक खेल और एंड गेम में उनके द्वारा गलती करने से वे गेम बराबरी पर समाप्त हुए। 

पर 11 वें गेम में काले मोहरों से खेलते डिंग एक बार फिर दबाव में आ गए और गुकेश को पहली बार बढ़त मिल गयी। कार्लसन ने तब कहा कि अब डिंग की वापसी मुश्किल है। पर अगले ही गेम को जीतकर डिंग ने दिखाया कि वे आसानी से हार नहीं मनाने वाले हैं। 13 वें गेम में सफ़ेद मोहरों से खेलते हुए गुकेश ने पूरा दमखम लगा दिया और एक समय लगा कि डिंग समय सीमा से पहले 40 चालें पूरी नहीं कर पाएंगे। पर उन्होने किसी तरह 40 चालें पूरी कर ली। जब उन्होने 40 वीं चाल चली तो उनके पास सिर्फ 4 सेकेंड बाकी था। पर इतने दबाव में रहने के बावजूद उन्होने रूक को वहीं रखा जहां रखा जाना चाहिए। कहीं और रखते या कोई और चाल चलते तो हार जाते। पर शायद आज किस्मत उनके साथ नहीं थी या किस्मत ने मानो गुकेश को विश्व विजेता बनाना कल ही तय कर रखा था।

अक्सर जब किसी महत्वपूर्ण टेस्ट श्रृंखला में टेस्ट मैच समय से काफी पहले समाप्त हो जाते हैं तो बचे हुए दिनों में या दो टेस्टों के बीच के समय में हम क्रिकेट प्रेमी भारतीयों को उन दिनों बड़ा खालीपन सा लगता रहता है। वर्तमान गावस्कर-बार्डर ट्रॉफी के दोनों टेस्ट जल्दी-जल्दी खत्म हो गए पर खालीपन का जरा भी अहसास नहीं हुआ क्योंकि इस बार क्रिकेट जितना ही रोमांचक और गावसकर-बार्डर ट्रॉफी से भी बड़ा टूर्नामेंट शतरंज का विश्व चैंपियनशिप के मैच उस खालीपन को भरने के लिए थे। और लक्ष्य था गुकेश को जीतते हुए देखना। कल गुकेश को जीतता देखकर गुकेश के साथ खुशी में हम सबकी की आँखें गीली हो गयी। पर ये अभी शुरुआत है। गुकेश का लक्ष्य कास्पारोव, आनंद और कार्लसन की तरह विश्व का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनना है। वे जानते हैं कि वे अभी सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी नहीं हैं। अभी भी सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी कार्लसन हैं। पर मात्र 18 वर्ष में खिताब को वापस भारत लाने वाले गुकेश के लिए कोई भी लक्ष्य उनके पहुँच से दूर नहीं है। हम सबकी शुभकामनाएं उनके साथ हैं।

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