मदरसों को विश्वविद्यालय से मान्यता मिले तो खत्म हो जाएगा डिग्री का पेंच
सुप्रीम कोर्ट के मदरसा बोर्ड द्वारा दी जाने वाली कामिल (स्नातक) और फाजिल (परास्नातक) की डिग्री पर रोक लगने के बाद मदरसों में असमंजस की स्थिति है। अब मदरसा संचालक और उलेमा इस दिशा में रास्ता तलाश रहे हैं कि मदरसों में कामिल और फाजिल की पढ़ाई करने वालों का क्या किया जाए। प्रदेश भर के कामिल और फाजिल की डिग्री भी यूपी मदरसा बोर्ड की मुंशी (10 वीं) और आलिम (12 वीं) की तरह दी जाती थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी अधिनयिम के तहत गलत बताया है।
प्रदेश भर में मदरसों में 17 लाख छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और इमाम ईदगाह मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि इन 17 लाख छात्रों में से छह से सात लाख छात्र कामिल और फाजिल की पढ़ाई कर रहे हैं। अब इन छात्रों के सामने भविष्य का संकट है। मौलाना ने कहा कि यूजीसी अधिनियम के दायरे की बात तकनीकि है। जिसे समझा जा रहा है। अब सरकार और हमें इस दिशा में रास्ता तलाशना होगा कि इन बच्चों को डिग्री कैसे मिले।
विश्वविद्यालय से मदरसों की सम्बद्धता मौलाना महली ने कहा कि कामिल और फाजिल स्नातक और परास्नातक स्तर की डिग्री है। यूजीसी मानक विश्वविद्यालय पूरे करते हैं। एक रास्ता ये निकल सकता है कि विश्वविद्यालय से मदरसों को सम्बद्धता दी जाए।
मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि कोर्ट के आदेश को हमें गंभीरता से लेना होगा। इसके लिए मदरसों में नए कोर्स शुरू किए जाने चाहिए। प्रोफेशनल कोर्स की दिशा में कदम उठाने होंगे ताकि बच्चे मदरसे से निकलने के बाद अपने पैरों पर खड़े हो सकें।
देवबंद दारुल उलूम मोहतमिम मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट-2004 पर मंगलवार को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। कहा कि कानून के अंतर्गत देश के सभी मदरसा बोर्डों को संरक्षण मिलना चाहिए।