गुरुघंटाल महाचांडाल

आधुनिक वर्तमान समय में सनातन समाज को अपने तप निष्ठा चरित्र कार्य व्यावहारिकता से संगठित करने वाले और सनातन समाज का सिर्फ भावना के नाम पर शोषण करने वाले विभिन्न विभिन्न समाज सेवियों में जमीन आसमान का अंतर है....   चाहे वह राजनीतिक सेवा हो या सामाजिक  सांस्कृतिक सेवा 

सिर्फ तानाशाही नीति रीति एवं खोखली प्रीति कृति से तो यंत्र-मंत्र तंत्र कुछ भी काम नहीं करता...  और जो काम दिख रहा है सिर्फ कागजों में ..... आंकड़ों में जमीन पर आधा काम भी नहीं और विशेषकर जब जब सनातन समाज द्वारा आंख बंद करके कुछ गुरुघंटालों और चांडालों को राजनीतिक अथवा सामाजिक सांस्कृतिक पद दायित्व कुर्सी सौंप दी जाती है और फिर उनकी मनमानी को आश्रय देकर उनकी हर एक हरकतों को बिना आंतरिक मूल्यांकन के 5 वर्ष तक प्रमाणित कर दिया जाता है....  फिर समाज संस्था दल के उद्देश्य लक्ष्य उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के कारण गौण होकर रसातल में चले जाते हैं, तो फिर समाज संस्था दल के नैतिक मूल्यों का ह्रास पतन शुरू हो जाता है,       

आंतरिक पर्यावरण दूषित प्रदूषित होने के कारण अच्छाईयां एवं अच्छे सज्जन इन तथाकथित दुर्जनों के कारण अच्छे समाज दल संस्था से भी दूर हो जाते हैं,  क्योंकि बार-बार इनसे  समाधान की अपेक्षा की जाती है तो हताशा निराशा ही हाथ लगती है।     
   
 समस्याओं का उचित समाधान जो की इनके पास होता है अर्थात ये सक्षम हैं ये चाहे तो सत्ता पक्ष की पूँछ और विपक्ष की मूँछ पड़कर छोटी-छोटी सार्वजनिक समस्या को चुटकी में हल कर सकते हैं,  किंतु दुर्भाग्य देखिए उसको भी करने में ये गुरु घंटाल महाचांडाल अपनी गंदी राजनीति और दुराग्रह की भावना से बिल्कुल भी कार्य नहीं करते सिर्फ समर्पण का झूठा दिखावा करके आदर्शता नैतिकता की बौद्धिक घुट्टी पिलाकर ये तथाकथित दुरात्मा छलबल द्वारा कहीं जातिवाद तो कहीं क्षेत्रवाद और कहीं भाई भतीजावाद अपनाकर अपनी चारित्रिक नैतिक कमजोरी को ढकने का दुःसाहस बार-बार करते हैं,   

  चुपके चुपके सिर्फ अपने खास विशेष उपग्रहों के और अपने रिश्तेदारों के मांग की पूर्ति येनकेन प्रकारेण कर लेते हैं वह मांग चाहे सार्वजनिक हो अथवा व्यक्तिगत ...  
और कभी समाज की  आवश्यकता समस्या समाधान की बात इनसे पूछी जाए तो फिर
  इन सबको सांप सूंघ जाता है उनके मुंह में दही जम जाती है उनकी आंखों में मोतियाबिंद पड़ जाता है ..... तो इस प्रकार आज तक बहुत बड़ा नुकसान हुआ है हमारे समाज को इस राष्ट्र को संस्कृति को प्रकृति को,        
 हमारे स्वाभिमान को,  इन तमाम गुरुघंटालों और महाचांडलो को अब बेनकाब करने की परम आवश्यकता है ।

--------- भरत सिंह रावत-------- 8979071211  (देवभूमि उत्तराखंड)

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