भूल गए हम अपनी संस्कृति भूल गए अपनी बोली भाषा, भूल बिसर गए रीति रिवाज छोड़ गए अपने गांव बासा
अपने लोगों ने ही बिल्कुल भी पहचाना नहीं अपनों को
सबकी प्यास बुझाने वाला पहाड़ आज बन बैठा प्यासा हर संसाधनों पर कब्जा लोगो का हम बेदखल बारामासा
बलिदानियों की कृपा से मिला राज्य किंतु सुख जरासा
ना हमको ना ही हमारे बच्चों को कोई विशेष सुविधा ... झूठे आश्वासन दुविधा ही दुविधा पहाड़ में है घोर निराशा
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(भरत सिंह रावत)