🚩🕉 *पौराणिक शिवालयों में एक सिद्धपीठ श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर नंदानगर- घाट चमोली देवभूमि उत्तराखंड में अवस्थित है*
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देवभूमि उत्तराखंड से- भरत सिंह रावत
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*नंदानगर घाट का पौराणिक नाम चक्रप्रयाग* जो कि सप्त प्रयागो में सातवां उपप्रयाग है ... श्री सिद्धेश्वर महादेव का महात्म्य अकल्पनीय अविश्वसनीय अतुलनीय जरूर लगेगा किंतु जो भक्त श्रद्धा से इस इस पावन पवित्र परिसर में आएगा वही समझ पाएगा की उसे क्या प्राप्त हुआ है, पौराणिक शुद्ध पवित्र गंगा चंपावती नदी और नंदाकिनी नदी एवं (शिवधारा) त्रिपाणी के त्रिवेणी संगम के समीप श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर का होना पौराणिक स्कंद पुराण केदारखंड में भी जिक्र है श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर परिसर में वर्तमान समय में जो विभिन्न मंदिरों का समूह है उसमें श्री काशी कोतवाल भैरवनाथ, श्री राधाकृष्ण, मां भगवती एवं श्री हनुमान जी की प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियां विराजमान हैं, दूर-दूर से भक्त गण इस मंदिर परिसर में आते रहते हैं और अपनी मनौती को पूरी करते हैं निर्मल मन एवं सच्ची श्रद्धा भक्ति से जो इस सिद्धपीठ मंदिर परिसर में आता है, देर सबेर अवश्य उसकी मनौती पूरी होती है, वर्तमान में मंदिर के मुख्य पुजारी श्री भगवती प्रसाद देवराडी जी हैं, जो पूरी भक्ति निष्ठा से आए सभी भक्तों को मंदिर परिसर का दर्शन कराते हैं एवं उचित मनोयोग से पूजन कार्य करके सभी भक्तों के कार्य को पूर्ण करने में सहयोग करते हैं, इस मंदिर में अभी पिछले माह 25 जून को ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य श्री 1008 जगद्गुरु अविमुक्तेश्वरानंद जी चमोली मंगलम यात्रा के दौरान सिद्धेश्वर महादेव में भी आए* ।
पंडित जी बताते हैं कि जो मंदिर परिसर में सुरांई उपनाम कल्पवृक्ष है वह बहुत ही पौराणिक है और इस वृक्ष का भी अपना अलग महत्व है इस वृक्ष के नीचे जो समाधि ध्यान करते हैं उन्हें अवश्य सिद्धि प्राप्त होती है (बशर्त नियम उपनियमों का कड़ाई से पालन हो जो कि कठोर अनुशासन भी है) ... पंडित भगवती प्रसाद देवराडी बताते हैं कि यह सिद्धपीठ अच्छे एवं बुरे कर्मों का परिणाम /संकेत भी तत्काल देता है, इसलिए बुरे कर्म एवं बुरी सोच वाले वाले यहां बहुत कम आते हैं जो भी भक्त श्रद्धालु आते हैं वे अच्छे सोच वाले ही आते हैं, पंडित जी बताते हैं कि यह मंदिर परिसर संपूर्ण क्षेत्र की रक्षा भी करता है, इस महासंकट /विपदा में श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर परिसर सभी भक्तों की रक्षा करें,🚩 धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, सभी प्राणियों में सद्भावना हो, संत समाज का कल्याण हो, जय देवभूमि जय उत्तराखंड🕉
लिङ्गं एकादशं विद्धि देवि सिद्धेश्वरम् शुभम।
वीरभद्र समीपे तु सर्व सिद्धि प्रदायकम्।।
श्री सिद्धेश्वर महादेव की स्थापना की कथा ब्राह्मणों द्वारा स्वार्थवश सिद्धि प्राप्त करने की दशा में नास्तिकता की ओर बढ़ने और फिर उनकी महादेव आराधना से जुडी हुई है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवदारु वन में समस्त ब्राह्मणगण एकत्रित हो सिद्धि प्राप्त करने हेतु तप करने लगे। किसी ने शाकाहार से, किसी ने निराहार से, किसी ने पत्ते के आहार से, किसी ने वीरासन से, आदि प्रकारों से ब्राह्मण तपस्या करने लगे। किन्तु सैकड़ों वर्षों के बाद भी उन्हें सिद्धि प्राप्त नहीं हुई। इसके फलस्वरूप ब्राह्मण बेहद दुखी हुए एवं उनका ग्रंथों, वचनों पर से विश्वास उठने लगा। वे नास्तिकता की ओर बढ़ने लगे। तभी आकाशवाणी हुई कि आप सभी ने स्वार्थवश एक दूसरे से स्पर्धा करते हुए तप किया है इसलिए आपमें से किसी को भी सिद्धि प्राप्त नहीं हुई। काम, वासना, अहंकार, क्रोध, मोह,लोभ आदि तप की हानि करने वाले कारक हैं। इन सभी कारकों से वर्जित होकर जो तपस्या व देव पूजा करते हैं उन्हें सिद्धि प्राप्त होती है।
अब आप सभी महाकाल वन में जाएं और वहां वीरभद्र के पास स्थित लिंग की पूजा-अर्चना करें। सिद्धि के दाता सिर्फ महादेव ही है। उन्हीं की कृपा से सनकादिक देवता को सिद्धि प्राप्त हुई थी। इसी लिंग के पूजन से राजा वामुमन को खंड सिद्धि, राजा हाय को आकाशगमन की सिद्धि, कृतवीर्य को हज़ार घोड़े, अरुण को अदृश्य होने की, इत्यादि सिद्धियां प्राप्त हुई हैं। उस लिंग की निस्वार्थ आराधना करने से आप सभी को भी सिद्धि प्राप्त होगी।
तब वे सभी ब्राह्मणगण चक्रप्रयाग आए और सर्वसिद्धि देने वाले इस शिव लिंग के दर्शन किये जिससे उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई। उसी दिन से वह लिंग सिद्धेश्वर के नाम से विख्यात हुआ।
दर्शन लाभ:
*मान्यतानुसार जो भी मनुष्य सज्जन 6 महीने तक नियमपूर्वक श्री सिद्धेश्वर का दर्शन करते हैं उन्हें वांछित सिद्धि प्राप्त होती है।* 🔱
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जय सिद्धेश्वर महादेव
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