क्या उदयपुर की तर्ज पर जावद भी बन जायेगा झीलों की नगरी? अगर बन जायेगा तो कैसे और कब? आइये जानते हैं।



इब्राहीम बोहरा। इस कहानी की शुरुआत होती है सन 1985 में जब ग्वालियर रेयॉन्स एंड सिल्क मैन्युफैक्चरिंग या जिसे हम ग्रासिम के नाम से भी जानते हैं, के तत्कालीन चेयरमैन श्री आदित्य विक्रम बिरला ने जावद के समीप खोर ग्राम में अपना पहला सीमेंट प्लांट, “विक्रम सीमेंट वर्क्सका उद्घाटन किया। आपको बता दें कि सीमेंट बनाने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण घटक होता है वह है लाइमस्टोन, जिसे हम हिंदी में चुना पत्थर भी कहते हैं और यह घटक जावद में पाया जाने वाला सबसे प्रचूर मात्रा में उपलब्ध खनिज है। 

 

यदि आपके मन में यह विचार आ रहा है कि इन सब बातों से जावद के झीलों की नगरी बनने का क्या सम्बन्ध है तो सच तो यह है कि इन्हीं का एक मात्र सम्बन्ध है जावद को झीलों की नगरी बनाने में। दरअसल लाइमस्टोन की उत्खनन ओपन पिट माइनिंग पद्धति से होता है जिसमें कि जितने भी क्षेत्रफल की खदान होती है उसे पूरा का पूरा ऊपर से नीचे तक खोदा जाता है, ना कि सुरंगे बना कर। और तो और आज कल के आधुनिक उपकरण इतने शक्तिशाली है कि ज़्यादा समय भी नहीं लगता। बस इन्ही ओपन पिट खदानों की श्रृंखला से शुरू होता है जावद के झीलों की नगरी बनने का सफर। 

 

इसे विस्तृत रूप से समझने के लिए यह जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि जावद नगर और उसके आस-पास के तक़रीबन 15 किलोमीटर के दायरे में लाइमस्टोन करीब 46 मीटर (150 फ़ीट) से 58 मीटर (190 फ़ीट) की गहराई तक उपलब्ध है। जिसका सीधा-सीधा मतलब यह निकलता है कि यहाँ लाइमस्टोन की खदानों के लिए जगह ही जगह है। आप में से कई पाठको को इस जानकारी से यह अनुमान तो लग ही गया होगा कि कैसे जावद, उदयपुर की तरह झीलों की नगरी बनने की और अग्रसर है। 

 

चलिए अब इन सरे तथ्यों को एक साथ जोड़कर देखतें हैं, सर्वप्रथम तो विक्रम सीमेंट वर्क्स की सालाना उत्पादन क्षमता 6.67 मीट्रिक टन है जिसका सीधा-सीधा मतलब यह है कि उसे उतने ही लाइमस्टोन के उत्खनन की आवश्यकता भी है जिसकी आपूर्ति अनेकों ओपन पिट खदानों से होती है और जब इनकी गहराई इतनी हो जाती है कि जिसके बाद लाइमस्टोन मिलना नामुमकिन हो जाता है तो उन्हें बॉउंड्री वॉल बना कर संरक्षित कर दिया जाता है। 

 

अब चूँकि नीमच जिले का ग्राउंड वाटर टेबल बारिश के पहले 30 मीटर (98 फ़ीट) और बारिश के बाद 15 मीटर (49 फ़ीट) है तो स्वाभाविक है कि इन खुली खदानों में पानी का भण्डारण तो होगा ही और होता ही है, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण इस लेख के शुरुआत में छायाचित्र (गूगल सैटेलाइट इमेज) में देखा जा सकता है। 

 

तो इन्हीं बंद पड़ी खदानों की श्रृंखला ने जावद के आस-पास करीब 5 झीलों का निर्माण किया है जिसमें जावद से 5 किलोमीटर दूर स्थित विक्रम सीमेंट प्लांट के समीप करीब 2 किलोमीटर लम्बी और 120 मीटर चौड़ी 2 झीलें, 8 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम कांडका के समीप 430 मीटर लम्बी और 180 मीटर चौड़ी 1 झील, 3 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम खेड़ा राठोड़ के समीप चाँद के आकार वाली 1700 मीटर लम्बी और औसतन 250 मीटर चौड़ी 1 झील और 3 किलोमीटर दूर ग्राम कुंडला और ग्राम सुवाखेड़ा के मध्य स्थित 2 किलोमीटर लम्बी और औसतन 250 मीटर चौड़ी एक झील (कुल 5 झीलें) शामिल है। इसके अतिरिक्त अत्यंत वृहद् पैमाने पर चल रहे उत्खनन के परिणामस्वरूप जल्द ही ग्राम सुवाखेड़ा के समीप लगभग 1500 मीटर व्यास की गोलाकार झील का निर्माण होना संभावित है। 

 

रही बात उदयपुर की तो उदयपुर में कुल 4 झीलें हैं जिनमें फतहसागर झील, पिछोला झील और उदयसागर झील लगभग आयताकार है और जिनका व्यास लगभग २ किलोमीटर है और बड़ी झील की कुल लम्बाई 2 किलोमीटर है और औसतन चौड़ाई 300 मीटर है।  हालाँकि उदयपुर के समक्ष जावद की इन झीलों का क्षेत्रफल 25% भी नहीं है लेकिन अगर जावद के कुल क्षेत्रफल से इसकी तुलना की जाए तो ये झीलें जावद के कुल क्षेत्रफल से दुगनी है। 

ग़ौरतलब है कि उदयपुर की झीलों और जावद की झीलों में एक बड़ा तुलनात्मक फर्क यह भी है कि उदयपुर की इन झीलों के समीप कई महल और इमारतें निर्मित हैं जो उदयपुर का गौरान्वित इतिहास दर्शाती है और पर्यटन को बढ़ावा भी देती हैं, जबकि जावद की ये झीलें चरों और से दीवार में क़ैद किसी मुजरिम की तरह है जो अपनी रिहाई का इंतज़ार कर रहीं हैं। 

 

दरअसल इन झीलों को मैंने कैदी की संज्ञा इसलिए दी है क्योंकि इन झीलों की भूमि यानि कि इन खदानों की भूमि विक्रम सीमेंट वर्क्स के पास लीज़ पर पड़ी हुई है, हालाँकि शासन-प्रशासन चाहे तो इन्हें विक्रम सीमेंट वर्क्स से पुनः प्राप्त कर सकता है क्योंकि इनसे जितना लाइमस्टोन खनन किया जा सकता था वो कर लिया गया है लेकिन किसे परवाह है? कौन चाहता है कि जावद क्षेत्र का कभी विकास भी हो? शायद कोई नहीं। 

 

आपको बता दें की वाटरबॉडीज़ के इर्द-गिर्द कई सारे विकास किये जा सकते है जिनमें पर्यटन मुख्य रूप से सम्मिलित है, इसके अलावा अन्य कई फ़ायदे लिए जा सकते है जैसे कि मछली पालन, सिंचाई योजनाएं, इत्यादि। एक उदाहरण यह भी है कि महाराष्ट्र के पुणे के समीप ऐसे ही एक झील पर लवासा नामक एक ख़ूबसूरत शहर बसा दिया गया, हालाँकि वह परियोजना कुछ ख़ास चल नहीं पाई। 

 

इस सम्बन्ध में जावद तहसील की एक मात्र संस्था ऐसी है जिसने विक्रम सीमेंट वर्क्स के माइनिंग मैनेजर से इस सम्बन्ध में बात करनी चाही किन्तु असफल रहे, उस संगठन का नाम है, “क्षेत्रीय विकास संगठन।इस संगठन के सदस्यों का कहना है कि यदि उन्हें खेड़ा राठौड़ स्थित झील का उत्तरदायित्व दे दिया जाता है तो वे उसे मनमोहक पर्यटन स्थल में परिवर्तित कर सकते हैं।  उनका यह भी कहना है कि इससे जावद क्षेत्र का ही नहीं अपितु पुरे नीमच ज़िले का पर्यटन विकसित होगा। 

 

तो यह थी जावद की उदयपुर के तर्ज पर झीलों की नगरी बनने की गाथा, अब यह गाथा भविष्य में यथार्थ होती है या नहीं यह तो केवल समय ही बताएगा। 

5 टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढ़िया जानकारी दी है इब्राहिम भाई ने पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है

    जवाब देंहटाएं
  2. अन्नदाता अन्न ऊगा कर देश का पेट भरता व अपने परिवार का भी भरण पोषण करता है यह भी सर्वे कर लेत यहां पहले कीतना क्रषि उत्पादक होता था ओर अभी कीतना होता है किसानों के पक्क्ष की भी बात कर लेते सिर्फ कार्पोरेट की जी हजूरी इस आलेख में महसूस होरही है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. भाई साहब शायद आपने लेख ध्यान से नहीं पड़ा है, निचे से तीसरे पैराग्राफ में मैंने सिंचाई परियोजना का भी उल्लेख किया है।

      हटाएं
और नया पुराने