जावद में 'समंदर' के आगे हो गए फैल, दुश्मनी भूला सरवानिया में खेल गए 'खेल'!


राजनीति खत्म होने की आशंका में
राजकुमार- सत्यनारायण हुए एक 

 नीमच । (सतीश सैन)
भाजपा की जन विरोधी सरकार के खिलाफ जावद विधानसभा क्षेत्र से निकली कांग्रेस की जन आक्रोश यात्रा कई चर्चाओं को जन्म दे गई। कांग्रेस के लगातार हार के कारण क्या है? यात्रा के प्रभारी जीतू पटवारी सहित यात्रा में शामिल पार्टी नेताओं को भी समझते देर नहीं लगी। जावद में अच्छी खासी जनसभा के बाद सरवानिया में जिस प्रकार से टिकट की चाह में दावेदारों में शुमार राजकुमार अहीर और सत्यनारायण पाटीदार द्वारा अपने गुर्गों के जरिए माहौल खराब करने का प्रयास किया गया, मंच पर मौजूद नेता तत्काल ही उनकी मंशा भांप गए और दोनों को बिना भाव दिए और समंदर पटेल के साथ कार्यकर्ताओं के स्वागत सत्कार के बीच मनासा रवाना हो गए। सूत्रों के अनुसार इस घटनाक्रम के तुरंत बाद पूरे घटनाक्रम से कांग्रेस के प्रदेश मुखिया कमलनाथ को अवगत करा दिया गया। ऐसे में राजकुमार के प्रति जो थोड़ी बहुत पार्टी नेताओं में सहानुभूति बची थी वह भी खत्म होती दिखाई दे रही है। इसे देखते हुए दोनों के खिलाफ पार्टी द्वारा कभी भी कार्रवाई की जा सकती है।

लगातार हार फिर भी दावेदार

कांग्रेस नेताओं ने दबी जुबान में बताया कि अब तक राजकुमार दावेदारों की लिस्ट में शामिल थे लेकिन सरवानिया घटनाक्रम के बाद उनके प्रति कार्यकर्ताओं में लगाव था वह भी खत्म हो गया। पार्टी नेताओं का कहना है कि राजकुमार अहीर पर पार्टी ने दो बार भरोसा जताया लेकिन वह भरोसे पर खरे नहीं उतर पाए। वर्ष 2008 में पार्टी ने टिकट दिया लेकिन भाजपा उम्मीदवार ओमप्रकाश सखलेचा के सामने टिक नहीं पाए और यही से पार्टी कमजोर होने लग गई। 2013 में टिकट नहीं दिया तो राजकुमार अहीर निर्दलीय ताल ठोकने से भी नहीं चूके। इस वजह से पार्टी को फिर हार का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद पार्टी ने 2018 में फिर मौका दिया लेकिन इस मौके को भुनाने में भी नाकामयाब रहे। हालत यह थी कि निर्दलीय ताल ठोकने वाले समंदर पटेल के सामने पार्टी कैंडिडेट होने के बावजूद राजकुमार बौने साबित हुए। राजकुमार को मात्र 47840 वोट मिले जबकि समंदर पटेल बतौर निर्दलीय 35548 लोगों का विश्वास जीतने में कामयाब रहे। राजकुमार अहीर लगभग 5000 वोटो से हार गए। पार्टी नेताओं का कहना है कि बार-बार हार के बाद भी विधानसभा को राजकुमार ने बपौती मान लिया है। इसी कारण पार्टी को अब सखलेचा के सामने किसी दमदार नेता को उतारने की जरूरत है।

सत्यनारायण से कोई भी संतुष्ट नहीं

पार्टी सूत्रों का कहना है कि सत्यनारायण वर्ष 2008 में जावद जनपद के अध्यक्ष चुने गए लेकिन उनका किसी से भी कोई व्यवहार नहीं रहा। कोई भी व्यक्ति उनसे संतुष्ट नहीं था। इसका कारण यह है कि अपने कार्यकाल के दौरान न तो कार्यकर्ताओं को तवज्जो दी और न ही पार्टी कार्यकर्ताओं को गांठा। पार्टी ने फिर भी सहानुभूति रखते हुए सत्यनारायण को नीमच से मैदान में उतारा परंतु वहां पर भी पार्टी की उम्मीदों को परवान नहीं चढ़ा पाए।

अंतिम मौका इसलिए दोनों हो गए एक

जिस प्रकार से समंदर पटेल पूरे लाल लश्कर के साथ भोपाल में पार्टी में शामिल हुए, उसके बाद से ही राजकुमार अहीर और सत्यनारायण पाटीदार की नींद उड़ी हुई थी क्योंकि वर्ष 2018 में पटेल ने जावद से ही बतौर निर्दलीय ताल ठोकी थी। साधन सुविधाओं से संपन्न पटेल के सामने दोनों ही मुकाबले में कहीं नहीं टिकते और संभवतः पार्टी द्वारा भी उन्हें इशारा कर दिया गया। उसके बाद से पटेल द्वारा जावद विधानसभा में डेरा डाल दिया गया। पटेल के एक बार जीतने के बाद राजनीति हमेशा के लिए खत्म होने की आशंका में राजकुमार और सत्यनारायण अपनी पुरानी दुश्मनी भूल बैठे और एक हो गए। जन आक्रोश यात्रा में हंगामा खड़े करने वाले लोग भी क्षेत्र के नहीं है। कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा उन लोगों को ट्रेस आउट करने का प्रयास किया गया लेकिन जावद और सरवानिया सहित आसपास से उनका कोई भी संबंध नहीं निकला। ऐसे में माना जा रहा है कि सत्यनारायण और राजकुमार द्वारा नारेबाजी के लिए बाहर से गुर्गे बुलाए गए जो यात्रा के निकलने के साथ ही अचानक गायब हो गए।

ये बोले जीतू पटवारी

इस संबंध में यात्रा के प्रभारी पूर्व मंत्री जीतू पटवारी का कहना था कि पार्टी नेता समंदर पटेल को ना तो मंच और न ही रथ से उतारा गया था। यह मात्र अफवाह है। हमने सरवानिया घटनाक्रम से पार्टी नेता कमलनाथ को अवगत करा दिया है। उनके निर्देश अनुसार अब अगला कदम उठाया जाएगा।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट