
बात 2008 की है। राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुए थे। यहां की नाथद्वारा सीट पर कांग्रेस के सीपी जोशी और भाजपा के कल्याण सिंह चौहान के बीच बेहद दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला था। हुआ ये था कि यहां से चार बार के विधायक और सीएम पद के उम्मीदवार सीपी जोशी महज 1 वोट से हार गए थे। उन्हें 62,215 वोट मिले थे और कल्याण सिंह को 62,216।
सीपी जोशी की हार की वजह भी बड़ी दिलचस्प है। दरअसल, जिस दिन वोटिंग हो रही थी, उस दिन उनकी पत्नी और बेटी मंदिर चली गईं और वोट नहीं डाल पाई। बाद में सीपी जोशी ने खुद इस बारे में बताया था। 2008 में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन सीपी जोशी की हार के कारण अशोक गहलोत के सीएम बनने का रास्ता साफ हो गया।
अब एक किस्सा और सुन लीजिए। 2004 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए। यहां की संतेमरहल्ली सीट पर जनता दल सेक्युलर के उम्मीदवार एआर कृष्णमूर्ति भी सिर्फ एक वोट से कांग्रेस के ध्रुवनारायण आर से हार गए थे। कहते हैं कि एआर कृष्णमूर्ति के ड्राइवर को छुट्टी नहीं मिली थी और वो वोट नहीं डाल पाया था।
आप सोचेंगे कि चुनाव तो बिहार में हैं और बात राजस्थान-कर्नाटक की हो रही है। ऐसा इसलिए ताकि पता चल सके कि चुनाव में एक-एक वोट कि कितनी अहमियत होती है।
बिहार में तो आजतक ऐसा कोई उदाहरण देखने को मिला जब कोई उम्मीदवार एक वोट से हारा हो। लेकिन, बिहार के चुनावी इतिहास में ऐसे उदाहरण जरूर हैं, जब उम्मीदवारों की जीत का अंतर 50 से भी कम रहा है। इस स्टोरी में हम आपको बताएंगे कि पिछले चुनाव में ऐसी कौनसी सीटें थीं, जहां जीत का अंतर हजार से भी कम रहा था। साथ ही ये भी बताएंगे कि किन सीटों पर उम्मीदवारों ने लंबे अंतर से जीत दर्ज की थी। इसके अलावा ये भी कि पिछले 10 चुनावों में कौन-कौन से उम्मीदवार 50 से भी कम अंतर से जीते।




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