आईए जानते हैं, भारत के राष्ट्रीय प्रतीक।

ओमप्रकाश कसेरा
जावद प्रत्येक आजाद देश के अपने राष्ट्रीय प्रतीक होते हैं, आईए जानते हैं हमारे देश के राष्ट्रीय प्रतीक रोचक जानकारी,
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी
राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा
राष्ट्रीय वाक्य सत्यमेव जयते,
राष्ट्रीय नारा श्रमेव जयते
राष्ट्रीय सर्वोच्च पुरस्कार
भारत रत्न,
राष्ट्रीय ध्वज गीत-हिंद देश का प्यारा झंडा,
राष्ट्रीय लिपि देवनागरी
राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी एवं 15 अगस्त,
राष्ट्रीयता भारतीय
राष्ट्रीय खेल हॉकी
राष्ट्रीय दस्तावेज श्वेत पत्र
राष्ट्रीय संवत, शक संवत
राष्ट्रीय, वृक्ष अशोक
राष्ट्रीय, फल आम
राष्ट्रीय, नदी गंगा
सहित यह हमारे देश के राष्ट्रीय प्रतीक है,

राष्ट्रीय चिन्ह,
भारत के राष्ट्रीय चिन्ह को सम्राट अशोक के
सारनाथ वाराणसी के स्तंभ से लिया गया है, इस स्तंभ में चार शैर एक दूसरे की ओर पीठ किए हुए खड़े हैं, चारों शेरों के मुंह खुले हैं, जो शौर्य का प्रतीक है, भारतीय संविधान सभा ने इस कृति मैं से सामने के भाग पर स्थित तीन शैरों को ही अपने प्रतीक चिन्ह में लिया है, तीनों खड़े शहर के नीचे आधार भाग पर एक (भारत के राष्ट्रीय ध्वज के मध्य भाग में स्थित चक्र) है इस चक्र को गति, विकास एवं धर्म का प्रतीक माना जाता है, इस चक्र में कुल 24 तिलिया है, आधार भाग पर चक्र के दाएं और एक बेल का चिन्ह बना है, यह बेल स्फूर्ति व परिश्रम का प्रतीक है, इसे भारतीय ग्राम व श्रम के प्रतिनिधित्व के तौर पर अपनाया गया है, चक्र के बाएं और वेगवान घोड़े का चित्र अंकित है, इसे भी गति व ताकत के रूप में 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया, आधार के मध्य सत्यमेव जयते लिखा है, जिसका अर्थ सत्य की सदा विजय, यह देवनागरी लिपि में है, इसे मुंडकोपनिषिद से उद्गृत किया गया है, सत्यमेव जयते भारत के राष्ट्रीय वाक्य के रूप में अपनाया गया है,

राष्ट्रीय ध्वज
भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है, अर्थात इसमें तीन रंगों को प्रतीकात्मक तौर पर अपनाया गया है, यह तीन समान अनुपात वाली आडी पट्टी से बना है, जो केसरिया, सफेद, एवं हरे रंग की है, सबसे ऊपर केसरिया रंग है, जो शौर्य बलिदान जागृति तथा त्याग का प्रतीक है, बीच में सफेद रंग की पट्टी है, जो सत्य सादगी एवं पवित्रता का प्रतीक है, सबसे नीचे गहरा हरा रंग समृद्धि का सूचक है, राष्ट्रीय ध्वज में जो सफेद पट्टी के मध्य चक्र जो गहरे नीले रंग का बना है इस चक्र में 24 तिलिया है, चक्र का व्यास सफेद पट्टी के बराबर होता है, यह चक्र सत्य की प्रगति के मार्ग का प्रतीक है, इसे सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ की आकृति से लिया गया है, ध्वज के तिरंगे स्वरूप को संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को अपनाया था, और इसे 14 अगस्त 1947 को संविधान सभा के अर्धरात्रि कालीन अधिवेशन में राष्ट्र को समर्पित किया था, यह ध्वज अपने तीनों रंगों व चक्र के माध्यम से राष्ट्रवासियों को ईमानदारी से सत्य का मार्ग अपना कर राष्ट्र को समृद्ध बनाने की प्रेरणा देता है, राष्ट्रीय ध्वज की लंबाई चौड़ाई का अनुपात 2*3 है, संविधान सभा में इसके सम्मान की रक्षा की भी व्यवस्था है, यह प्रत्येक भारतीय के गौरव का प्रतीक है, अतः इसका प्रयोग व प्रदर्शन दोनों ही नियम अनुसार होने चाहिए, आम नागरिकों में ध्वज के प्रति श्रद्धा भाव को देखते हुए, राष्ट्रीय ध्वज संहिता 2002 में संशोधन किया गया है, इसके साथ ही अब राष्ट्रीय ध्वज को अपने निवास स्थान एवं दुकान की छत पर सभी राजकीय भावनाओं में आम दिनों एवं समारोह मैं हर खास व आम नागरिक द्वारा भी फहराया जा सकता है,

राष्ट्रीय गान, गाने में 52 सेकंड लगते हैं,
भारत का राष्ट्रीय गान रविंद्र नाथ टैगोर ने एक गीत के रूप में लिखा था, इस गीत को सर्वप्रथम तत्त्वबोधिनी पत्रिका में भारत का भाग्य विधाता शीर्षक से सन 1912 में छप गया था, इस गीत को सबसे पहले नवंबर 1911 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन के दौरान गया गया, इस गीत में वर्णित संपूर्ण भारत की भूमि की छटा व देश प्रेम की भावनाओं को देखते हुए इसे राष्ट्रीय गान के रूप में अपने का निर्णय किया गया, इसमें कुल पांच पद है, राष्ट्रीय गान में प्रथम पद को ही गया गया, जिसमें पांच छद और 13 पंक्तियां हैं, संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को इसे राष्ट्रगान के रूप में अपनाया और इस गाने में 52 सेकंड लगते हैं,

राष्ट्रीय गीत को गाने में 65 सेकंड लगते हैं,
बांग्ला साहित्यकार बंकिम चंद्र चटर्जी के गीत को भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्य किया गया है, चटर्जी ने सन 1882 में अपने उपन्यास आनंद मठ में यह गीत लिखा था, वंदे मातरम गीत को भी सर्वप्रथम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गया गया, भारतीय संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में अंगीकृत किया, राष्ट्रीय गीत में संपूर्ण गीत का प्रथम पद ही अपनाया गया है, इस गीत को गाने की कुल अवधि 65 सेकंड है, इसका अंग्रेजी में अनुवाद भी किया गया है, भारतीय राष्ट्रीय गीत को संगीत की अनेका घुनो में आजमाया गया, लेकिन मान्यता पन्नालाल घोष द्वारा बनाई गई धुन को ही मिली और यही धुन राष्ट्रीय गीत में अपनाई गई है,
राष्ट्रीय पंचांग या कैलेंडर
भारत के राष्ट्रीय पंचांग में शक संवत को अपनाया गया है, यह 57 ईसा पूर्व में आरंभ हुआ था, इस संवत का प्रथम महीना चैत्र महा से आरंभ होता है एवं इसका अंतिम महीना फागुन होता है, संवत में यह एक वर्ष 365 दिन का होता है, इसका प्रथम महीना चैत्र अंग्रेजी (ग्रेगोरियन कैलेंडर) के 22 मार्च की तारीख से आरंभ होता है, लीप वर्ष में यह 21 मार्च को शुरू होता है,शक संवत में भी ग्रेगोरियन की भांति 12 महीने होते हैं, चैत्र से प्रारंभ होकर यह बैसाख, जैस्ठ, आषाढ़, सावन भाद्र, अश्विन, कार्तिक,
मार्गशीर्ष, पोष, माघ एवं फागुन है, इसे भारत सरकार ने 22 मार्च 1957 को अपनाया, इसके माध्यम से शासकीय कार्य संचालित होते हैं, इसे अपनाने के पीछे मुख्य तीन उद्देश्य रहे, राजपत्र में वर्णन, आकाशवाणी का प्रसारण, एवं सरकार द्वारा जारी किए गए कैलेंडर नागरिकों को संबंधित पत्र शक संवत के अनुसार ही देश व राज्य का वित्तीय वर्ष 31 मार्च को खत्म होता है एवं 1 अप्रैल से नए व्यक्ति वर्ष प्रारंभ होता है,

राष्ट्रीय पशु
भारत सरकार ने बाघ(पेथरा टाइगरिस) को अपनाया है, यह अत्यंत भव्य एवं सुंदर प्राणी है, यह धारीदार चर्म वाला पीले रंग का पशु है, बाघ अपने दमखम पूर्ति आक्रामकता सुंदरता के लिए जाना जाता है, भारत का नाम राजा भारत के नाम पर पड़ा वह भारत बचपन में शेरों से खेला करता था, भारत के वनों में बाघ काफी अधिक संख्या में है,
राष्ट्रीय पुष्प कमल है
भारत का राष्ट्रीय पुष्प कमल है इसे वनस्पति विज्ञान में नेसब्लौ न्यूजफैरा कहा जाता है,
वाणी विद्या संगीत की देवी सरस्वती इसी पुष्प पर विराजमान मानी जाती है, पुराणो एवं  धार्मिक ग्रंथो में भी इसे अत्यंत पवित्र पुष्प माना गया है,

राष्ट्रीय पक्षी मोर
भारत का राष्ट्रीय पक्षी मोर है, इस प्राणी विज्ञान में पावो क्रिस्टेटस पीकॉक फिजेंट नाम से जाना जाता है, मोर अपने रंगों की छठा समृद्धि के लिए पहचाना जाता है, इस रंग-बिरंगे पक्षी की गर्दन लंबी एवं लोचदार एवं सर सिक्के नुमा या मुकुट नुमा कलगी होती है, इसकी आंख के नीचे हल्का सफेद निशान होता है, इसकी कलगी अत्यंत आकर्षक होती है, इसकी गर्दन के नीचे वाला भाग मिट्टी के रंग जैसा होता है, जब यह नृत्य करने लगे तो वर्षा अवश्य होती है, मोर का बोलना भी समृद्धि का पूर्व घोष माना जाता है, भारतीय वन्य प्राणी सुरक्षा अधिनियम 1972 के अंतर्गत इसे पूर्ण संरक्षण दिया गया है,

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