पुरानी रेल सम्पत्तियों की बजाय नए प्रोजेक्ट्स को क्यों प्राइवेटाइज़ नहीं करती सरकार? कोंकण रेलवे मॉडल से लग सकते हैं नीमच - सिंगोली - कोटा रेल लाइन को पंख।

 


इब्राहीम बोहरा। नीमच - सिंगोली - कोटा रेल लाइन की मांग नीमच जिले से पिछले 53 वर्षों से उठती आ रही है। इसी के चलते वर्ष 2014 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार में रेल मंत्री श्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने मंदसौर - नीमच से सांसद सुश्री मीनाक्षी नटराजन की अनुशंसा पर इस रेल परियोजना के सर्वे हेतु 7.09 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की थी। 

 

सर्वे होते - होते कई वर्ष बीत गए और कहानी फिर आकर अंतिम सर्वे फाइनल लोकेशन सर्वेपर अटक गई। करीब वर्ष बाद जिले की जनता विशेष रूप से जावद विधान सभा की जनता पुनः जागरूक हुई और चुनावी साल को देखते हुए रेल संघर्ष समिति ने नीमच जागरण मंच के साथ मिलकर विभिन्न प्रकार से इस मांग को उठाया जिसमें हस्ताक्षर अभियान, सोशल मीडिया कैंपेन, मुख्यमंत्री जी को ज्ञापन और चुनाव बहिष्कार जैसे आंदोलन किये गए। अंततः तत्कालीन भाजपा सांसद श्री सुधीर गुप्ता को इस और ध्यान देना पड़ा और फरवरी 27 फरवरी 2024 को रेल मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव द्वारा प्रधान मंत्री गति शक्ति योजना के तहत इस रेल लाइन के अंतिम स्थान सर्वेक्षण के लिए 5.03 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई। 

 

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में इसका सर्वे कार्य चल रहा है जिसके बाद अंतिम स्थान का नक्शा और रेल लाइन को बिछाने में आने वाले खर्च की रिपोर्ट रेल मंत्रालय को सौंपी जाएगी और पुनः यह बहुप्रतीक्षित रेल लाइन बजट स्वीकृति के लिए क्षेत्रीय सांसद और रेल मंत्री की मोहताज हो जाएगी। हालाँकि रेल संघर्ष समिति इसके आगे का कार्य प्रगतिशील रहे उस हेतु अनेकों योजनाएं तैयार की हुई है जिसमें पोस्टकार्ड अभियान, जिला बंद, आदि सम्मिलित है। 

 

लेकिन इस समस्या का एक और उपाय भी है जो कि वर्तमान NDA सरकार की नीतियों के अनुकूल भी है, वो है पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप। इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण है 1998 में शुरू हुई कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन लिमिटेड।”  हालाँकि इसमें किसी भी प्रकार की प्राइवेट पार्टनरशिप नहीं थी लेकिन इसके निर्माण की पद्धति कुछ इसी तरह की थी जिसमें प्राइवेट निवेश की जगह पर राज्य सरकारों का निवेश था। 

 


दरअसल कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन का गठन मुंबई से मंगलौर के बीच 741 KM लम्बी रेल लाइन बिछाने के लिए 1990 में हुआ था जो कि बहुत ही मुश्किल जगहों से गुज़रने वाली थी। चूँकि रेल मंत्रालय के पास इस रेल परियोजना के लिए पर्याप्त बजट (3555 करोड़) उस समय नहीं था, इसलिए इसे इंडियन रेलवेज से पृथक एक कंपनी बनाया गया और इस रेल मार्ग में आने वाले राज्य महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक और केरल की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए, केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा मिलकर फंड किया गया।  साथ ही इससे होने वाली आय को भी सभी भागीदारों में उनके अंश के अनुपात से बांटा जाता है। 

 

यदि नीमच - सिंगोली - कोटा रेल लाइन और ऐसी अनेकों परियोजनाएँ जो की बहुप्रतीक्षित हैं और रेल मंत्रालय के लिए फायदेमंद भी, का कार्य इसी तर्ज पर किया जाए तो यह तो निश्चित ही है कि जो कार्य 20 वर्ष में पूर्ण होना है वह 4 - 5 वर्ष में ही पूर्ण कर लिया जाएगा। इसके बारे में थोड़ा विस्तृत रूप से समझने के लिए हमें इसे एक काल्पनिक नाम मालवा - हाड़ोती रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड (MHRCL)” देकर अलग - अलग चरणों में विभाजित करके समझना होगा जो कि निम्नानुसार हैं :-

 

1) विभिन्न सर्वेक्षण कार्य 

2) भूमि अधिग्रहण 

3) विभिन्न निर्माण कार्य 

 

 

1. विभिन्न सर्वेक्षण कार्य :-  किसी भी रेल मार्ग को बिछाने से पहले  सर्वेक्षण किया जाता है जिसमे यातायात सर्वे, टोही सर्वे, प्रारंभिक सर्वे और अंतिम स्थान सर्वेक्षण, ये चार चरण होते हैं, अब चूँकि इसकी फंडिंग भारतीय रेलवे के द्वारा की जाती है जो की केंद्र सरकार के अधीन है इसलिए इस लेवल पर केंद्र सरकार को उसकी फंडिंग के अनुकूल अनुपात में MHRCL में हिस्सेदारी भी आवंटित कर दी जाएगी। 

 

2. भूमि अधिग्रहण :-  भूमि अधिग्रहण किसी भी रेल परियोजना का सबसे महंगा और जटिल चरण होता है, इसके तहत रेल मार्ग को बिछाने के लिए विभिन्न भूमिस्वामियों की भूमि का अधिग्रहण होना होता है, जैसे केंद्र सरकार की भूमि, राज्य सरकारों की भूमि एवं निजी भूमिस्वामियों की भूमि। अब चूँकि भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के अंतर्गत भारतीय रेलवे को रेल परियोजनाओं के लिए सहमति या असहमति से भूमि अधिग्रहण करने की शक्तियां प्राप्त है, तो जिन - जिन भूमिस्वामियों की भूमि का अधिग्रहण होता है उन्हें भी MHRCL में उनके निवेश के अनुकूल अनुपात में भागीदारी दी जाएगी। यहीं से पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप PPP की शुरुआत होती है। 

 

3. विभिन्न निर्माण कार्य :- तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण चरण इस कड़ी में निर्माण सम्बन्धी कार्यों का है। निर्माण भी कई अनेक चरणों में बटा है जैसे अर्थ वर्क, ट्रैक लैंग, पुलिया निर्माण, सिग्नलिंग, स्टेशन निर्माण और इलेक्ट्रिफिकेशन आदि। जिस प्रकार भूमि अधिग्रहण में विभिन्न स्वामित्व होते हैं उसी प्रकार यह सरे निर्माण कार्य विभिन्न सरकारी एवं निजी कंपनियों द्वारा किए जाते हैं, तो इस PPP मॉडल में जो कंपनी जितने रुपये का कार्य करेगी उसको उतने निवेश के अनुकूल अनुपात में MHRCL की हिस्सेदारी दे दी जाएगी। 

 

अंततः पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल से कोंकण रेलवे की तर्ज पर मालवा - हाड़ोती रेलवे कॉर्पोरेशन के अंतर्गत नीमच - सिंगोली - कोटा रेल लाइन बहुत ही काम समय में बनकर तैयार हो जाती है और सरकारों को इसके लिए ज़्यादा फंड भी नहीं जुटाना पड़ता। सम्भवतः ये हो सकता है कि निजी प्लेयर्स अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए यात्रियों से सामान्य से कुछ अधिक शुल्क चार्ज करें किन्तु इन छोटी चिंताओं के चलते बड़े विकास को रोकना अनुचित होगा और अगर सरकार चाहे तो किराये पर कैप लगा सकती है।

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