क्या भाजपा के हो जायेंगे 2 टुकड़े? क्या है भाजपा ‘B’ विंग का राज़? कहीं ये कांग्रेस की प्लानिंग तो नहीं।

इब्राहीम बोहरा। 21 मार्च 2020, ये वो दिन है जब कांग्रेस की मनमोहन सरकार में मंत्री रहे तत्कालीन भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की मौजूदगी में उनके समर्थन वाले 22 बाग़ी विधायक, जिसमें से 6 तो कमलनाथ सरकार में मंत्री थे, जिनमें तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत, इमरती देवी, प्रभुराम चौधरी, प्रद्युमन सिंह तोमर और महेंद्र सिंह सिसोदिया शामिल है, ने मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार गिरा कर भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा के निवास पहुँच कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी।

दरअसल नेताओं का पार्टियां बदलने का दौर तो चलता रहता है, ज्योतिरादित्य के पिताजी स्वर्गीय माधवराव सिंधिया भी कांग्रेस में आने से पहले भारतीय जन संघ से सांसद हुआ करते थे। लेकिन मध्य प्रदेश का यह घटनाक्रम बहुत ही संगीन थे, इस घटना के कारण म. प्र. की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से चुनी हुई कांग्रेस की सरकार गिर गई थी और भाजपा की शिवराज सरकार पुनः सत्ता में आ गई थी। कांग्रेस के लिए यह झटका मात्र 22 वाट का नहीं था अपितु इससे पूरा का पूरा ट्रांसफार्मर ही तहस नहस हो गया।

यदि म. प्र. के अलावा देखा जाए तो सन 2008-2010 तक महाराष्ट्र के कांग्रेस से मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण और सन 2002-2007 और 2017-2021 तक पंजाब के कांग्रेस से मुख्यमंत्री रहे कप्तान अमरिंदर सिंह ने भी भारतीय जनता पार्टी का दामन थम लिया था।

वैसे कुछ दिनों पूर्व म. प्र. में कांग्रेस की अल्पकालिक सरकार के मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ के भी हाथ का साथ छोड़कर कमल में शामिल होने की खबरों ने खूब सुर्खियां बटोरी, हालाँकि कमलनाथ, फ़िलहाल हाथ के साथ ही है। फ़िलहाल इसलिए क्योंकि भविष्य किसे कहाँ ले जाए ये कोई नहीं जनता।

अभी हाल ही में 09 मार्च को कांग्रेस नेता राहुल गाँधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा की मध्य प्रदेश से विदाई के साथ ही कांग्रेस के 13 और नेताओं ने कांग्रेस से विदाई ले ली और भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। जिसमें म. प्र. कांग्रेस के दिग्गज नेता, पी वी नरसिंहा सरकार और मनमोहन सरकार में मंत्री रहे म. प्र. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुरेश पचौरी, म. प्र. कांग्रेस के उपाध्यक्ष एवं धार से पूर्व सांसद गजेंद्र राजूखेड़ी, इंदौर से पूर्व विधायक संजय शुक्ला, देपालपुर से पूर्व विधायक विशाल पटेल और भोपाल कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष कैलाश मिश्रा शामिल है।

म. प्र. की यह खबर चल ही रही थी कि अगले ही दिन राजस्थान के भी 25 दिग्गज नेता भाजपा में शामिल हो गए। दरअसल यह माजरा हाल ही में कुछ नेताओं पर पड़ी ED की रैड का असर बताया जा रहा है। इन नेताओं में भी UPA-2 में मंत्री रहे लालचंद कटारिया जो की गहलोत सरकार में भी कृषि मंत्री थे, पूर्व सांसद खिलाडी लाल बैरवा, 3 पूर्व विधायक राजेंद्र यादव, रिछपाल मिर्धा, रामनारायण किसान और राजस्थान कांग्रेस सेवादल के पूर्व अध्यक्ष सुरेश चौधरी भी शामिल है। इससे कुछ ही समय पहले राजस्थान सरकार के पूर्व मंत्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीय ने भी भाजपा की सदस्यता ले ली थी।

म. प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस घटनाक्रम की प्रतिक्रिया में कहाँ कि, “महात्मा गाँधी ने आज़ादी के बाद कहाँ था कि कांग्रेस को भंग कर देना चाहिए और नए राजनितिक दल बनाने चाहिए।” तो कहीं यह बात सिद्ध तो नहीं हो रही है?

ऊपर बताए गए कांग्रेस नेताओं की पार्टी छोड़कर जाने के इन अलग अलग घटनाक्रमों से यें प्रश्न जैसा की आप सभी ने शीर्षक में पढ़ा कि, “क्या भारतीय जनता पार्टी के 2 टुकड़े हो जायेंगे? या फिर वाकई में किसी भाजपा ‘B’ विंग की तैयारी हो रही है, या फिर उससे भी पृथक किसी नए राजनितिक संगठन की”, उठना तो लाज़मी है क्योंकि अब भाजपा अत्यधिक कांग्रेस युक्त हो गई है।

अब ऐसा तो है नहीं की इतने बड़े - बड़े दिग्गज नेता पार्टी बदलकर शांति से सामान्य कार्यकर्त्ता की तरह भारतीय जनता पार्टी का काम करते रहेंगे। स्वाभाविक है कि वे अपने अपने कद के अनुकूल पद, प्रतिष्ठा और सबसे महत्वपूर्ण ‘टिकिट' की महत्वाकांक्षा ज़ाहिर करेंगे। लेकिन फिर यहीं नेता जब कांग्रेस में थे और इनके परस्पर विरोधी जो की भाजपा में इनके बराबरी के कद पर विराजमान थे वो क्या करेंगे? क्या वो शांति से अपने हिस्से का निवाला किसी बाहरी को खाने देंगे? यह भी स्वाभाविक है कि वे वरोध करेंगे।

इस सन्दर्भ में सबसे बड़े चिंतन का विषय तो यह है कि कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष और सामाजिक समानता वाली विचारधारा से ओत प्रोत ये सभी नेता जो किसी न किसी कारणवश भाजपा में सम्मिलित तो हो गए, वे भाजपा की धार्मिक और सामाजिक कट्टरपंथी विचारधारा के साथ सामंजस्य कैसे बिठाएंगे? शायद यही कारण है की कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की भाजपा में शामिल होने पर कहाँ था कि, “ये विचारधारा की लड़ाई है और ज्योतिरादित्य जी की विचारधारा मैं जनता हूँ, वो मेरे साथ कॉलेज में थे, उन्होंने अपने राजनितिक करियर के दर से अपनी विचारधारा को जेब में रख दिया है लेकिन वास्तविकता तो यह है कि उन्हें भाजपा में संतुष्टि मिल ही नहीं सकती।”

कयास यह भी लगाया जा सकता है कि जिस प्रकार से लोकपाल आंदोलन के बाद कांग्रेस का ग्राफ डाउन होने लगा तो पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और अंदरूनी सलाहकारों ने यह रणनीति बनाई हो कि जिसमें भाजपा को आंतरिक तौर पर कमजोर करने के लिए यह तरीका अपनाया हो जिसे हम देसी भाषा में “घर में घुस कर मारना" या आजकल के ट्रेंडिंग शब्द “सर्जिकल स्ट्राइक” कहते हैं।

या यह भी हो सकता है कि किसी दिन ये सरे बाग़ी नेता मिलकर एक दिन नए राजनितिक दल का निर्माण कर ले या फिर ऐसा भी हो सकता है कि जैसे महाराष्ट्र में शिवसेना के बाग़ी एकनाथ शिंदे इतने मजबूत हो गए की शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के पुत्र एवं शिवसेना के पूर्व अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को ही अपनी पार्टी से हाथ धोना पड़ा, वैसे ही भाजपा के मूल निवासी नेताओं को भी अपनी पार्टी से हाथ धोना पड़े।

अब भविष्य किसे कहाँ ले जाता है ये तो वक़्त ही बताएगा।

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