करगिल शहीदों के लिखे चुनिंदा आखिरी खत, जो शहादत के बाद उनके तिरंगे में लिपटे शव के साथ ही उनके घर पहुंचे

करगिल युद्ध को ठीक 21 साल हो चुके हैं। वो युद्ध जिसमें हमने अपने 530 सैनिकों को खोया। शहादत से पहले, 18 हजार फीट ऊंचाई, माइनस 13 डिग्री की कड़कड़ाती ठंड और भयंकर गोलीबारी के बीच सैनिकों ने अपनों को जो चिटि्ठयां लिखीं, उनमें से कुछ चिटि्ठयां तिरंगे में लिपटे उनके शव के साथ पहुंचीं तो कुछ शहादत के कई दिनों बाद।

युद्धक्षेत्र में जज्बा जिंदा रखने के लिए चिटि्ठयां ही सहारा थीं। करगिल, बटालिक और द्रास में सेना के पोस्टल सर्विस कोर ने म्यूल मेल यानी खच्चर के जरिये सैनिकों को पत्र पहुंचाए। ऊंची पोस्टों तक खच्चर हर तीसरे दिन जवानों को चिटि्ठयां पहुंचाते थे।

शहीदों की तरह ही अमर हो गईं उनकी ये आखिरी चिटि्ठयां जो भास्कर ने विशेष तौर पर आपके लिए जुटाई हैं।

कैप्ट विजय बात्रा 7 जुलाई 1999 को शहीद हुए। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र सम्मान दिया गया।

कैप्टन विक्रम बत्रा, परमवीर चक्र, 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स
वे एक चोटी को दुश्मन के कब्जे से छु़ड़ा चुके थे। पांच को मार गिराया। अपने जवानों को बंकर में छोेड़ खुद दुश्मन के करीब पहुंचे। अकेले हमला किया। दूसरी चोटी भी कब्जे में ली। 7 जुलाई को 1999 को शहीद हुए।
जुड़वां भाई को विक्रम का पहला पत्र
डियर कुश
हमें बात किए काफी लंबा अरसा बीत गया। तुम्हारे ऑफिस में फोन लगाया था, लेकिन बात नहीं हो पाई। कैसे हो तुम? अब भी टाटा में काम कर रहे हो या कोई नया जॉब ढूंढ़ लिया? तुम्हारा बैंक ऑफ पंजाब का इंटरव्यू कैसा रहा? इधर सब ठीक है। कमांडो कोर्स से वापस आने के बाद मैं अपनी पुरानी लोकेशन पर तीन महीने रहा।

तुम न्यूज पढ़-सुन रहे होगे कि यहां माहौल गर्म है। मैं 15 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठा हूं। पाकिस्तानियों से लड़ रहा हूं। सुरक्षा के कारण जगह का नाम नहीं लिख सकता। पर जिंदगी खतरे में है। कुछ भी हो सकता है यहां, हर रोज गोलियां और आर्टिलरी शेलिंग झेल रहा हूं। आज का दिन बहुत खराब रहा। मेरी बटालियन के एक ऑफिसर शहीद हो गए। इसलिए सभी यहां दुखी हैं।

...बाकी तो सब ठीक है। कुश... तुम पापा और मम्मी का ध्यान रखना। क्योंकि मैं कह ही चुका हूं कि यहां कुछ भी हो सकता है। पता नहीं मैं कब वापस आऊंगा। नॉदर्न कमांड में सभी की छुट्टी कैंसिल कर दी गई है। और कुछ नहीं है कहने को। सभी को मिस कर रहा हूं। मुझे जवाब लिखना।
तुम्हारा लव। 16 जून 1999
दूसरा व आखिरी पत्र

डियर कुश
कैसे हो। तुम्हारा प्यारभरा खत कल ही मिला। मैं काफी ऊंचाई पर हूं और ट्रैक के लिए तैयारी कर रहा हूं। आज शाम को ऊपर वाली पोस्ट पर जा सकता हूं। मेरी दो कंपनियां पहले ही वहां पहुंच चुकी हैं। उन्होंने काफी गोलीबारी झेली है। दुश्मन हमारे काफी नजदीक तक आ पहुंचा है। इसके बारे में और ज्यादा नहीं बता सकता। मेरा इंटरव्यू स्टार टीवी पर दो जुलाई को आया था। मेरा अपने साथियों के साथ एक फोटो अखबारों के पहले पेज पर भी आया है।

क्या तुमने वह देखा? क्या मुझे पहचान पाए। मेरी दाढ़ी बढ़ी हुई है। तुमने यहां के हालात के बारे में पूछा था। अब वो बेहतर हो रहे हैं। लेकिन नहीं पता पूरी तरह ठीक होने में कितना समय और लगेगा। हमारी सेना शानदार काम कर रही है। हमारे सैनिक पाकिस्तानियों के पीछे पड़े हैं और उन्हें जमकर खदेड़ रहे हैं। यार...तुम टेंशन मत लो। अपना काम ईमानदारी से करते रहो। भगवान सबको देख रहा है। वह जरूर एक दिन इसका फल देगा। तुममें सबकुछ करने का पोटेंशियल है और मुझे पता है तुम एक दिन जरूर सफल होगे। जीजाजी और मोनी को मेरे रिगार्ड्स।
तुम्हारा लव। 5 जुलाई 1999

कैप्टन मनोज पांडेय 3 जुलाई 1999 को शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र सम्मान दिया गया।

कैप्टन मनोज पांडे, परमवीर चक्र, 11 गोरखा राइफल्स, लखनऊ
दो दुश्मनों को मार गिराया। पहला बंकर नष्ट करते घायल हो चुके थे। खून बह रहा था। वह एक बंकर से दूसरे बंकर तक दुश्मन का खात्मा करते गए। आखिरी दुश्मन को मारकर ही आखिरी सांस ली।
दोस्त को लिखा हुआ खत- चार बार मौत का सामना कर चुका हूं, अच्छे कर्म हैं इसलिए जिंदा हूं...
डियर पवन
जितने लोगों को हो सके मेरा यह लेटर पढ़कर सुनाना। मुझे तुम्हारे दोनों पत्र मिले। दोनों लड़ाई के बीच में ही मिले। इस हाई एल्टीट्यूड पर दुश्मन के साथ लड़ाई सचमुच मुश्किल है। दुश्मन बंकर में छिपा है और हम खुले में हैं। दुश्मन पूरी प्लानिंग के साथ आया है और वह ज्यादातर चोटियों पर कब्जा कर चुका है। शुरुआत में हमारी स्थिति बहुत खराब थी, लेकिन अब हालात नियंत्रण में है। मैं खुद चार बार मौत का सामना कर चुका हूं। शायद कछ अच्छे कर्म के कारण अब भी जिंदा हूं। हर दिन हमें देशभर से चिटि्ठयां मिल रही हैं।

इसमें लिखा है– जस्ट डू इट। ये देखने में सचमुच अच्छा लग रहा है कि जरूरत और मुश्किल वक्त में हमारा देश एक हो जाता है। मैं नहीं जानता अगले ही पल क्या होगा, लेकिन मैं तुम्हें और देश को भरोसा दिलाता हूं कि हम दुश्मन को धकेल देंगे। इस ऑपरेशन ने इतना कुछ सिखाया है कि उसकी गिनती नहीं। इंडियन आर्मी सचमुच अद्भुत है। वह कछ भी कर सकती है। यहां बहुत सर्दी है, लेकिन बर्फ पिघलनी शुरू हो गई है। यदि सूरज निकल आए तो दिन ओके हो जाता है। रात में बहुत ठंड होती है माइनस 5 डिग्री। एक रिक्वेस्ट है... मेरे भाई को उसके अहम समय में गाइड करना। सभी दोस्तों को मेरा हैलो कहना। जब मैं लौटूंगा तो हमारे पास कई सारी बातें होंगी करने को। फिर बात करेंगे...।
तुम्हारा मनोज। 19 जून 1999

कैप्टन विजय थापर 29 जून 1999 को कारगिल में शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र सम्मान दिया गया।

आप उस जगह को आकर देखना जहां हमारी सेना लड़ रही है

कैप्टन विजयंत थापर,वीर चक्र, 2 राजपुताना राइफल्स, नंगल
उनकी प्लाटून दुश्मन के आर्टिलरी फायर में जवान खो चुकी थी। शवों को सुरक्षित स्थान पर भेज वे दुश्मन पर टूट पड़े। वे घायल हो चुके थे। उन्होंने तब ही प्राण छोड़े, जब दुश्मन को मार भगाया।
डियर पापा, मम्मी, बर्डी और ग्रैनी

जब तक आप लोगों को मेरा यह खत मिलेगा, मैं दूर ऊपर आसमान से आप लोगों को देख रहा होऊंगा। मुझे कोई शिकायत, अफसोस नहीं है। और अगर मैं अगले जन्म में फिर से इंसान के रूप में ही पैदा होता हूं तो मैं भारतीय सेना में ही भर्ती होने जाऊंगा और अपने देश के लिए लडूंगा। अगर हो सके तो आप जरूर उस जगह को आकर देखना, जहां आपके कल के लिए भारतीय सेना लड़ रही है। जहां तक यूनिट की बात है नए लड़कों को इस शहादत के बारे में बताया जाना चाहिए।

मुझे उम्मीद है मेरा फोटो मेरे यूनिट के मंदिर में करनी माता के साथ रखा जाएगा। जो कुछ भी आपसे हो सके करना। अनाथालय में कुछ पैसे देना। कश्मीर में रुखसाना को हर महीने 50 रुपए भेजते रहना। और योगी बाबा से भी मिलना। बर्डी को मेरी तरफ से बेस्ट ऑफ लक। देश पर मर मिटने वाले इन लोगों का ये अहम बलिदान कभी मत भूलना। पापा आप को तो मुझ पर गर्व होना चाहिए। मम्मी आप मेरी दोस्त से मिलना, मैं उससे बहुत प्यार करता हूं। मामाजी मेरी गलतियों के लिए मुझे माफ कर देना। ठीक है फिर, अब समय आ गया है जब मैं अपने साथियों के पास जाऊं। बेस्ट ऑफ लक टू यू ऑल। लिव लाइफ किंग साइज।
आपका रॉबिन। जून 1999
यह पत्र करगिल से 1 जुलाई 1999 को सिपाही नरेश जाट ने अपने दादाजी को राजस्थान के भालौत, झुंझुनूं लिखा था।

दादाजी लड़ाई चल रही है, लेकिन आप दिल छोटा मत करना। मैं पीछे नहीं हटूंगा। जरूरत पड़ी तो जैसे पिताजी ने 1971 की लड़ाई में अपना बलिदान दिया था, मैं भी दूंगा।

पिता विंग कमांडर जगन्नाथ आचार्य को 19 जून 1999 को लिखा मेजर पी. आचार्य का पत्र।

आप मौत के बारे में मत सोचिए। मौत की कैसी चिंता। आप हर रोज चारू (पत्नी) को महाभारत की एक कहानी सुनाया करिए। इससे आपके होने वाले पोते या पोती को अच्छे संस्कार मिलेंगे।

बेटी को 26 जून को ग्रेनेडियर अमिरुद्दीन का पत्र। ये पत्र उनकी बेटी को मैनपुरी यूपी में 4 जुलाई को मिला। पत्र के साथ ही परिवार को उनकी शहादत की खबर मिली।

बेटी तुम अपना मैट्रीकुलेशन का फॉर्म समय पर भर देना। मेरा इंतजार मत करना। मैं कुछ दिन बाद लौटकर आऊंगा। जब युद्ध खत्म होगा।

पत्नी राजकुंवर को हवलदार रामसिंह शेखावत ने 3 जुलाई 1999 को यह पत्र लिखा था। पत्र लिखने के बाद वह घर नहीं आ पाए। पत्र शव के साथ ही आया।

आपको कसम तो लगती नहीं, आपने बच्चों के लिए घी वगैरह तो लिया नहीं होगा। आपकी और बच्चों की बहुत याद आती है। आप जल्दी ही पत्र लिखना।

26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध समाप्ति की घोषणा की गई। भारत के 530 जवान शहीद हुए थे।

सूबेदार मेजर रामपाल सिंह, 34 राष्ट्रीय राइफल्स, झुंझुनू, 12 जुलाई 1999

लौटा तो पांच महीने घर पर ही रहूंगा, बाकी सात महीने सीमा पर...
प्रिय विमला,
खुश रहो। मैं यहां ठीक हूं। आशा करता हूं कि आप भी ईश्वर की कृपा से वहां कुशल होंगे। समाचार यह है कि छुट्टी के बारे में तो आपको पता ही है, सो इसके बारे में लिखने की जरूरत नहीं समझता। विकास का पत्र आया था। मेरी तरफ से कोई फिक्र मत करना। ज्यादा गर्मी में काम नहीं करना है। सुबह शाम जितना होता है कर लेना। सिर्फ उधर ही ध्यान रखना, मेरी चिंता नहीं। अभी मैं पूरी छुट्टी काटूंगा, जमा नहीं कराऊंगा। जब भी मिलेगी, मैं आ जाऊंगा। सो तकरीबन 12 महीने हैं, जिसमें पांच महीने घर और सात महीने ही घर से बाहर सीमा पर रहूंगा। खत आप खुद लिखना।

हवलदार मनीराम, जाट रेजिमेंट, झुंझुनू, 2 मार्च 1999

आपको खुशी होगी कि मैंने शराब बिल्कुल ही छोड़ दी...
पूज्य पिताजी, चरण स्पर्श।
मैं यहां कुशल रहते हुए आप सभी की कुशलता की कामना करता हूं। आगे समाचार यह है कि मैं यह दूसरा पत्र लिख रहा हूं। सो पत्र मिलते ही इसका जवाब शीघ्र देना। मैं अगले महीने की पांच तारीख को छुट्टी पर आने की कोशिश करूंगा। ताकि लावणी भी करवा सकूंगा और शादी भी हो जाएगी। बस जल्दी है तो आप सबसे मिलने की। वरना मैं खूब मजे में हूं। यहां सर्दी तो बहुत ज्यादा है। बाकी सबकुछ ठीक है।

आप लोगों को यह जानकर बहुत खुशी होगी कि मैंने शराब बिल्कुल छोड़ दी है। ज्वार बेच देना। दीपक व पवन की परीक्षा होने वाली है। सो उनको बताना कि दोनों खूब मन लगाकर पढ़ेंं। छुट्टी आने के बाद ये जो कहेंगे वो ही चीज लाकर दूंगा। बाकि सभी पत्र पढ़ने और सुनने वालों को मेरा राम-राम बांचना। बच्चों को प्यार। शेष कुशल से हूं।

नायक सतवीर सिंह कारगिल युद्ध में घायल हो गए थे। उनके पैर में गोली लगी थी।

नायक सतवीर सिंह, 2 राजपूताना राइफल्स, चूरू, 19 जून 1999

16 तारीख का अखबार जरूर पढ़ें, सभी शहीद मेरी ही यूनिट के थे...
पूजनीय माताजी,
पिताजी को पांवधोक बांचना। आप सब कैसे हैं? आज ही बहन सुशीला के पास भी पत्र डाल रहा हूं। सो याद रहे। मेरे बारे में आप कोई चिंता मत करना। मैं यहां बिल्कुल ठीक हूं। 16 तारीख का अखबार जरूर पढ़ें। जो घटना हुई वो सभी शहीद मेरी ही यूनिट के थे। अब ज्यादा खतरा नहीं है। तकरीबन शांति हो गई है। हालात पूरी तरह ठीक होने पर ही मैं छुट्टी की अर्जी दूंगा। सितंबर तक छुट्टी पर आ जाऊंगा, सो ध्यान रहे। पिताजी की तबीयत कैसी है? पत्र का जवाब जल्दी देना। मेरे लायक कोई सेवा हो तो लिखना।

सिपाही हवासिंह, जाट रेजिमेंट, बसमाना,4 जुलाई 1999

पत्र में किसी तरह की गलती हो तो माफ करना...
आदरणीय भाई साहब,
प्रणाम, मैं भगवान से कुशलता के उपरांत कुशलता की कामना करता हूं। आगे समाचार यह है कि आपका लिखा पत्र पढ़ा। 24 जून को लिखा बाबूजी का पत्र मिला। मैं आप से सीधे बात नहीं कर सकता हूं। टेलीफोन नहीं है यहां। पिछले पत्र में मैंने एक नंबर दिया था, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं है। फोन लगे तो भी बीच में ही कट जाता है। मौका मिलेगा तो मैं फोन करूंगा।

यहां तनाव है, लेकिन मेरी ओर से किसी प्रकार की चिंता मत करना। मेरे पास और कोई समाचार नहीं है। शायद आपने सवामणी कर दी होगी। मुझे सवामणी का नाम सुनकर ही खुशी हुई थी। अब पत्र बंद करने की अनुमति चाहता हूं। पत्र में किसी प्रकार की गलती हो तो माफ करना। माताजी को पांव धोक बांचना। भाई साहब को मेरा प्रणाम और छोटों को मेरा प्यार कहना।
(2014 में कारगिल विजय दिवस पर ये चुनिंदा अमर चिट्ठियां हमने दैनिक भास्कर अखबार में छापी थीं, ये चिटि्ठयां अमर जो हैं)

कहानी टाइगर हिल जीतने वाले की /मेरे सभी साथी शहीद हो गए थे, पाकिस्तानियों को लगा मैं भी मर चुका हूं, उन्होंने मेरे पैरों पर गोली मारी, फिर सीने पर, जेब में सिक्के रखे थे, उसने बचा लिया



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Letters From Kargil: The Kargil war through our soldiers' eyes


source https://www.bhaskar.com/db-original/news/letters-from-kargil-the-kargil-war-through-our-soldiers-eyes-127507013.html

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