
चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग, विक्रम लैंडर का क्रैश... इन सभी बातों को 22 जुलाई को एक साल पूरा हो गया। अब चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने चांद के 60% ध्रुवीय क्षेत्र को कवर कर लिया है। इससे मिले डेटा के आधार पर अगले एक साल में भारत यह अनुमान लगाने की स्थिति में होगा कि चांद पर कहां-कितना पानी है। दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत में इसरो चेयरमैन डॉ. के. सिवन ने कई नई जानकारी दी। उनसे बातचीत के प्रमुख अंश...
सवाल: चांद पर पानी का पता तो पहले ही था, फिर अब हमारी उपलब्धि क्या मानी जाएगी?
जवाब: पहली बार चंद्रयान-2 में डुअल फ्रीक्वेंसिंग बैंड पॉलरिमेट्रिक राडार भेजा गया था। इससे सतह से चार मीटर गहराई तक डेटा हासिल किया जा सकता है। दुनिया में अब तक किसी ने ऐसा नहीं किया। डेटा के जरिए हम एक साल में यह अनुमान लगाने में सफल हो जाएंगे कि चांद पर कहां कितना पानी है। इसरो से बाहर देश के कम से कम 40 विश्वविद्यालय व संस्थानों के 60 से अधिक भारतीय विज्ञानी यह काम कर रहे हैं।
सवाल:क्या ऑर्बिटर अपना काम पूरा कर चुका है?
जवाब: ऑर्बिटर अभी कई वर्षों तक परिक्रमा करेगा। इसमें लगे 8 उपकरण अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। मिनरल मैपिंग, चंद्रमा की सतह के एलीवेशन मॉडल का काम चल रहा है। एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर ने एल्युमिनियम व कैल्शियम के स्पष्ट स्पेक्ट्रल सिग्नेचर भेजे हैं। कुछ मात्रा में आयरन, मैग्नीशियम, सोडियम, टाइटेनियम, सिलिकॉन के भी संकेत मिले हैं। लेकिन मिनरल कितनी मात्रा में हैं यह निष्कर्ष आने में वक्त लगेगा।
सवाल:कोरोना का असर स्पेस मिशन पर भी पड़ा है?
जवाब: सरकार ने सभी विभागों से कहा कि वे अपने खर्चे घटाकर 60% तक ले आएं। अब किसी बजट को खारिज या खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन प्राथमिकताएं तय करनी पड़ीं।
सवाल:क्या गगनयान प्रोजेक्ट में भी देरी होगी?
जवाब: गगनयान हमारी प्राथमिकता है। इसके डिजाइन का काम पूरा हुआ ही था कि लॉकडाउन हो गया। हमारी गतिविधियां धीमी पड़ गईं। हम उद्योगों के फिर से शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं। फर्स्ट अनमैन्ड फ्लाइट से पहले हमें इंजन टेस्ट समेत कई परीक्षण करने थे। लेकिन कोई भी काम नहीं हो सका है, इसलिए इस साल दिसंबर में तय की गई पहली अनमैन्ड फ्लाइट स्थगित कर दी गई है। अभी उम्मीद है कि हम गगनयान के अगस्त, 2022 से पहले फाइनल फ्लाइट के लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे।
सवाल:अभी इसरो में काम कैसे हो रहा है?
जवाब: मार्च में जीसैट-1 की लॉन्चिंग रद्द होने के बाद इसके सैटेलाइट व रॉकेट दोनों को सेफ मोड में रखा गया है। तीन और सैटेलाइट लॉन्चिंग के लिए तैयार हैं। लेकिन अभी लॉन्चिंग संभव नहीं है। इसके लिए लोगों को तिरुवनंतपुरम और बेंगलुरू से श्रीहरिकोटा आना पड़ता है। हार्डवेयर भी विभिन्न हिस्सों से लाया जाता है। उद्योग बंद हैं, रॉकेट-सैटेलाइट के कलपुर्जे उपलब्ध नहीं हैं। इसरो को जो नया फैब्रिकेशन चाहिए, उसमें समय लगेगा। इसलिए अभी ये नहीं पता कि स्थिति कब सामान्य हो पाएगी।
इसरो का फोकस रिसर्च पर, ऑपरेशनल मिशन एनएसआईएल करेगा
इसरो प्रमुख ने कहा कि न्यू स्पेस इंडिया लि. (एनएसआईएल) के गठन के जरिए सरकार ने अंतरिक्ष गतिविधियों को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया है। ऑपरेशनल, कमर्शियल मिशन अब एनएसआईएल को करने हैं। इसरो को रिसर्च एंड डेवलेपमेंट पर फोकस करना है।
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source https://www.bhaskar.com/db-original/columnist/news/chandrayaan-2-which-has-explored-60-of-the-polar-area-of-the-moon-will-be-able-to-tell-in-a-year-how-much-water-on-the-moon-before-the-launch-time-of-gaganyaan-k-sivan-127539323.html