क्या मालवा राज्य का गठन होना चाहिए? यदि हाँ, तो क्यों? पढ़िए खबर...

 


इब्राहीम बोहरा। समय - समय पर जब - जब भारत में पृथक राज्यों की मांग उठी जैसे छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उत्तराखण्ड, तेलंगाना आदि और उनका निर्माण हुआ, तब - तब मध्य प्रदेश के निवासियों के ह्रदय में भी उनकी अपनी संस्कृति के अनुकूल अलग - अलग प्रांतों की मांग घर करती रही। इनमें प्रमुख रूप से मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग में स्थित मालवा, दक्षिणी भाग में स्थित महाकौशल, उत्तरी भाग में स्थित बुंदेलखंड और बघेलखण्ड और मध्य भारत शामिल है। 


दरअसल वर्ष २००० में छत्तीसगढ़ के अलग राज्य का दर्जा प्राप्त कर लेने के बाद भी मध्य प्रदेश क्षेत्रफल के मुकाबले में भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य और जनसँख्या के मुकाबले में पाँचवा सबसे बड़ा राज्य होते हुए भी जीडीपी के मुकाबले में दसवें स्थान पर और जीडीपी पर कैपिटा के मुकाबले में छब्बीसवें स्थान पर आता है। यहीं मुख्य कारण है कि हमेशा से मध्य प्रदेश के निवासियों के बिच पृथक राज्यों की मांग उठती रही है। 


इसके अलावा मध्य प्रदेश, भारत गणराज्य की तरह ही अपने आप में एक गणराज्य है क्योंकि यहाँ पर हर क्षेत्र के साथ उसकी संस्कृति, परम्पराएं, वेशभूषा और खास कर बोली बदल जाती है। उदाहरण के लिए मालवा में मालवी और निमाड़ी बोली जाती है जबकि बुन्देलखण्ड में बुंदेली, बघेलखण्ड में बघेली और मध्य भारत में उर्दू का बोल बाला है। यह बिलकुल वैसा ही है जैसे पंजाब में पंजाबी बोली जाती है, गुजरात में गुजरती, पश्चिम बंगाल में बंगाली और महाराष्ट्र में मराठी। जो कि एक और कारण देती है मालवा को पृथक राज्य बनाने के लिए। 


यही नहीं, मालवा का इतिहास भी काफी पुराण है, मालवा क्षेत्र सर्वप्रथम मालव जनजाति का उल्लेख होता है जो इसा पूर्व चौथी सदी में सिकंदर से हारने के पश्चात् पंजाब और राजपुताना से आकर अवन्ति ( वर्तमान उज्जैन ) और उसके आस - पास के इलाकों में बस गए। 


तत्पश्चात गुप्त वंश के राजा महासेनगुप्त और देव गुप्त ने मालवा साम्राज्य पर सन 575 से 606 तक शासन किया और उसके पश्चात् परमार वंश के राजा परमार से महालकदेव तक 26 राजाओं ने सन 800 से 1305 तक शासन किया, जिसमें राजा भोज परमार वंश के शासकों में सबसे प्रमुख रूप से वर्णित किये जाते हैं। यही नहीं, मालवा साम्राज्य पर सन 1401 से 1562 तक मुस्लिम शासकों ने भी राज किया, जो मूल रूप से अफगानी थे, जिनमे प्रमुख रूप से होशंग शाह गौरी, अलाउद्दीन खिलजी और बाज़ बहादुर शामिल हैं। 


वर्तमान की बात करें तो मध्य प्रदेश में कुल 230 विधानसभाएं है और स्वाभाविक रूप से इन सभी 230 विधानसभाओं का केवल एक मुख्यमंत्री, जो कि निश्चित ही रूप से इतने बड़े क्षेत्र की और अकेला ध्यान लगा सके यह संभव नहीं। यही सब कारण है कि मध्य प्रदेश का विकास सही रफ़्तार से हो पाना हमेशा कठिन ही रहा है, जबकि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश से अलग होकर विकास दर में मध्य प्रदेश से भी आगे निकल चुका है। 


वो कहते है ना, “छोटा परिवार, सुखी परिवार।”, ठीक वैसे ही, “छोटा प्रदेश, विकसित प्रदेश।”


और तो और कई ऐसी प्रथाएं है जो कि मध्य प्रदेश में नियमों का संचालन करती है किन्तु वह एक क्षेत्र मात्र तक ही सीमित रह जाती है क्योंकि भिन्न - भिन्न प्रथाएं प्रचलित है और यही कारण है कि मध्य प्रदेश विधानसभा का कोई भी नियम इतनी आसानी से लागू नहीं हो पाता, सरकारों के पूर्ण बहुमत में होने के बाद भी। 


इन्हीं समस्त ऐतिहासिक और वर्तमान परिदृश्यों को देखते हुए, यह कहना ग़लत नहीं होगा कि भविष्य में मध्य प्रदेश से पृथक प्राचीन मालवा के 24 जिलों जिनमें 4 जिलें वर्तमान राजस्थान में आते हैं को मिलकर एक नए प्रान्त “मालवा” या “मालवांचल” का गठन होना चाहिए जिससे की इस क्षेत्र के विकास को गति मिल सके। 


ज्ञात रहें कि यदि मालवा प्रान्त अस्तित्व में आता है तो इसमें सम्मिलित होने वाले मध्य प्रदेश के जिलें उज्जैन, इंदौर, रतलाम, झाबुआ, देवास, शाजापुर, सीहोर, राजगढ़, मंदसौर, नीमच, आगर मालवा, अलीराजपुर, धार, बड़वानी, पश्चिमी निमाड़, पूर्वी निमाड़, बुरहानपुर, हरदा, बैतूल, होशंगाबाद और राजस्थान के जिलें प्रतापगढ़, चित्तौरगढ़, कोटा और झालावाड़ है। 


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