कुर्सीजीवियों के कारण अन्नदाता सड़क पर
कृषि उत्पादों पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप 'सी-2 प्लस 50 प्रतिशत' के फार्मूले के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की मांग को लेकर दिल्ली प्रवेश कर रहे किसानों को हरियाणा स्थित शंभू बॉर्डर पर रोकने में पुलिस को चाहे सफलता मिल गयी हो लेकिन किसान नेता अगले कदम पर विचार-विमर्श कर रहे हैं। उधर सुप्रीम कोर्ट ने शंभू बॉर्डर खाली कराये जाने की एक जनहित याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि इसी आशय की एक अर्ज़ी पहले से ही उसके समक्ष विचाराधीन है इसलिये नयी याचिका का औचित्य नहीं है। तत्काल सुनवाई की आवश्यकता से भी उसने इंकार कर दिया। इस सिलसिले में शीर्ष न्यायालय ने पहले ही शांतिपूर्ण प्रदर्शन को जनता का मौलिक अधिकार बतलाया था और प्रशासन को किसानों के साथ बातचीत कर समस्या का हल निकालने का सुझाव दिया था। बहरहाल, किसान नये सिरे से इस आंदोलन को आगे बढ़ायें, इससे पहले सरकार को चाहिये कि इस जायज मांग को तत्काल स्वीकार कर उन्हें संतुष्ट करे।
अपने ऐलान के मुताबिक रविवार को जब हज़ारों की संख्या में किसानों ने अपनी ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के साथ बॉर्डर पार करने की कोशिश की तो वहां मौजूद बड़ी संख्या में पुलिस ने उन्हें रोक लेने में कामयाबी पाई। उसके पहले आंसू गैस के गोले छोड़े जिससे करीब आधा दर्जन किसान घायल हो गये। एक की स्थिति बहुत गम्भीर बताई गई है जिसे चंडीगढ़ स्थित पीजीआई में भर्ती कराया गया है। खनौरी बॉर्डर पर किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का अनशन सोमवार को 14वें दिन में प्रवेश कर गया। स्वास्थ्य परीक्षण करने वाले चिकित्सकों के अनुसार उनकी सेहत लगातार खराब हो रही है। आंदोलनकारी किसानों के प्रति पहले की सी बेरुखी अपनाते हुए केन्द्र सरकार उनके साथ चालबाजियां कर रही है। शुक्रवार को आंदोलन के नेताओं से कहा गया कि वे बिना ट्रैक्टर-ट्रॉली के सरकार से मिलने आ सकते हैं परन्तु शनिवार को जब उन्होंने जाने की कोशिश की तो उन्हें यह कहकर रोका गया कि केवल 10 लोगों को ही जाने की मंजूरी है। रविवार को पुलिस और प्रशासन ने यह आरोप लगाकर उन्हें रोक दिया कि मिलने हेतु जाने वाले किसान अपना परिचय नहीं दे रहे हैं। इसी के चलते शंभू बॉर्डर पर अप्रिय स्थिति बन गयी। हालांकि किसानों ने स्वयं ही अपने कदम वापस खींच लिये और स्वीकार किया कि पुलिस ने उन्हें जाने नहीं दिया है। वे आपस में विचार कर अगला कदम तय करेंगे।
केन्द्र सरकार के इस रवैये से साफ है कि वह पहले की ही तरह हठधर्मी बनी हुई है और किसानों के इस मुद्दे को लेकर कतई संजीदा नहीं है। उल्लेखनीय है कि 2020-21 में किसानों ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल 4 माह का आंदोलन किया था (9 अगस्त, 2020-11 दिसम्बर, 2021)। उस आंदोलन में 750 से ज्यादा किसान शहीद हुए थे। उस समय तो पुलिस ने उन्हें दिल्ली आने से रोकने के लिये बर्बरता की सारी हदें पार कर दी थीं। उत्तर भारत की कड़ाके की ठंड में उन पर पानी की बौछारें की गयीं, डंडे बरसाये गये, शरीर पर आंसू गैस के गोले फेंके गये, रबर बुलेट भी शरीर के ऊपरी हिस्सों में चलाई गयीं। इतना ही नहीं, सड़कों पर कीलें लगाई गयीं और पक्के किस्म के बैरिकेड तक लगा दिये गये थे। अभी इसी साल हुए लोकसभा चुनावों के पहले फरवरी में किसानों ने फिर से आंदोलन किया, तो सरकार व पुलिस ने अपनी जनविरोधी मानसिकता का एक और रूप दिखाते हुए हरियाणा व दिल्ली के बीच खाइयां तक खोद दी थीं।
एक तरफ केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार खुद को किसान हितैषी बतलाती है, तो दूसरी ओर वह किसानों की मांगों को पूरा करना तो दूर, उनसे बात करने के लिये तक तैयार नहीं है। किसानों द्वारा जिस प्रकार से कृषि कानूनों को वापस लेने के लिये मोदी को मजबूर किया गया, उससे लगता है कि अब सरकार ने तय कर लिया है कि वह आंदोलनकारियों से कोई संवाद नहीं करेगी। किसानों के साथ होने वाला उसका बर्ताव तो कम से कम यही दर्शाता है। कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान करते हुए हालांकि श्री मोदी ने कहा था, कि वे किसानों से एक फ़ोन कॉल की दूरी पर हैं और वे जब भी चाहें उनसे मिल सकते हैं।' उस बात को अब तीन वर्ष हो चुके हैं परन्तु प्रधानमंत्री हों या उनके कोई ज़िम्मेदार मंत्री, किसी के पास इतना वक़्त नहीं है; और न ही मंशा है कि वे किसानों को सामने बिठाकर बातचीत करें और किसानों को राहत दें। यह भी लोगों को अब तक याद है कि श्री मोदी ने दावा किया था कि 2022 तक वे किसानों की आय को दोगुना करेंगे। वह साल भी कब का गुजर चुका है।
इन सबसे सरकार की मंशा साफ है कि वह किसानों से कोई बात करना नहीं चाहती तथा उसे इतना हताश व निराश कर देना चाहती है कि वे इस मांग को ही भूल जायें। अपने लोगों से हाईवे को खाली कराने की याचिकाएं डलवाना भाजपा का पुराना हथकण्डा है जो पहले भी किसान आंदोलन और शाहीन बाग आंदोलन के दौरान आजमाया जा चुका है। सिनेमा से राजनीति में आईं भाजपा की सासंद कंगना रनौत ने चुनाव जीतने के कुछ दिनों के बाद ही कह दिया था कि 'कृषि कानूनों को फिर से लागू किया जाना चाहिये।' हालांकि वह उनका अधिकृत बयान नहीं था और उन्हें इसके लिये माफ़ी भी मांगनी पड़ी थी, लेकिन वह भाजपा की आम राय प्रतीत होती है। किसानों के साथ सरकार का सुलूक तो यही दर्शाता है।