खुशी भी नहीं है दुख भी नहीं है कि मेरे जीवन के 56 वर्ष जैसे तैसे बीत गए .... है परमात्मा एवं पितरों का आशीष कि स्वस्थ हैं सानंद हैं... किसी के प्रति छल कपट नहीं बस यही संतुष्टि है ...जिस हालत में परमात्मा रखेगा वही हालत स्वीकार है... उसी के चरणों में समर्पित होकर उसी के इशारे पर कुछ सोचता हूं कुछ बोलता हूं और कुछ करता हूं .... अपने लिए, अपने परिवार के लिए, अपने समाज के लिए, अपने राष्ट्र के लिए ।
जब तक जो भी भूमिका होगी हमारी उसमें खरा उतरना है ... यह सब नातेदारी रिश्तेदारी यह सब किरदार हैं, अपनी-अपनी जीवन यात्रा के ..... मंजिल एक ही है किंतु रास्ते अलग-अलग हैं इस जीवन यात्रा के.....